क्या कच्चातिवु द्वीप मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के बाद भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर का बयान खुद भारतीय जनता पार्टी और उसकी सरकार के लिए एक विवाद खड़ा कर गया है?
क्या कच्चातिवु द्वीप का मामला लोकसभा चुनाव के बीच में खास तौर से तमिलनाडु की राजनीति में कोई राजनीतिक असर डाल पाएगा?
क्या कच्चातिवु द्वीप सचमुच भारत सरकार ने एक समझौते के तहत श्रीलंका को दे दिया था ?
यह तमाम ऐसे सवाल है जिनको समझना और उनका प्रासंगिक जवाब तलाशना बहुत ही जरूरी हो गया है हम सब जानते हैं कि मछुआरों को लेकर तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से संवेदनशील रही है भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का मुद्दा हमेशा से एक विवाद का मुद्दा रहा है मछली पकड़ने को लेकर भारतीय मछुआरों को अक्सर श्रीलंका की सुरक्षा एजेंसियां गिरफ्तार करती रही है और इस मुद्दे को लेकर तमिलनाडु राज्य सरकार और भारत सरकार समय-समय पर श्रीलंका सरकार के साथ वार्ता करके एक दूसरे के साथ सहमति बनाकर मछुआरों को छुड़ाने से लेकर विवाद सुलझाने का प्रयास करते रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी इस लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु सहित पूरे दक्षिण भारत में अपना राजनीतिक जनाधार बढ़ाने में लगी है भाजपा की कोशिश है की उत्तर भारत से होने वाले राजनीतिक नुकसान की भरपाई दक्षिण भारतीय राज्यों में अपनी जीत सुनिश्चित करके पुरी की जा सके नॉर्थ ईस्ट इंडिया के राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति दक्षिण भारतीय राज्यों की तरह बहुत अच्छी नहीं है। भारतीय जनता पार्टी की कोशिश कभी काशी तमिल संगम का आयोजन करके तो कभी लोकसभा के नए भवन के लोकार्पण के समय दक्षिण भारत के साधु संतों को आमंत्रित करके अपने राजनीतिक जमीन तैयार करने की रही है शायद यही कारण है कि प्रधानमंत्री का भाषण दक्षिण भारत राज्यों में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं के मन में डीएमके और कांग्रेस के खिलाफ एक नया जोश भरने का है। कांग्रेस पार्टी ने जवाबी हमला करते हुए 2015 के लोकसभा में दिए गए विदेश मंत्रालय द्वारा जवाब का हवाला देकर तत्कालीन विदेश सचिव और मौजूदा विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर के बयान को ही बीजेपी प्रधानमंत्री और खुद डॉक्टर एस जयशंकर के लिए एक नई चुनौती पेश कर दी है।
कांग्रेस पार्टी की तरफ से जय राम रमेश ने एक डिटेल बयान जारी की है अपने बयान में जय राम रमेश ने लिखा है –
Is Dr. S Jaishankar, now Minister of External Affairs, disowning the reply given by the Ministry of External Affairs on January 27th, 2015, when the same Dr. Jaishankar was Foreign Secretary?
The MEA’s response to a RTI query on Katchatheevu in 2015 had said “This [Agreement] did not involve either acquiring or ceding of territory belonging to India since the area in question had never been demarcated. Under the Agreements, the Island of Katchatheevu lies on the Sri Lankan side of the India-Sri Lanka International Maritime Boundary Line.”
The easiest to hunt in a political expedition is a scapegoat. Who will it be?
( क्या डॉ. एस जयशंकर, जो अब विदेश मंत्री हैं, 27 जनवरी, 2015 को विदेश मंत्रालय द्वारा दिए गए जवाब को अस्वीकार कर रहे हैं, जब वही डॉ. जयशंकर विदेश सचिव थे? 2015 में कच्चातिवू पर एक आरटीआई क्वेरी के जवाब में विदेश मंत्रालय ने कहा था, “इस [समझौते] में भारत से संबंधित क्षेत्र का अधिग्रहण या त्याग शामिल नहीं था क्योंकि प्रश्न में क्षेत्र का कभी भी सीमांकन नहीं किया गया था। समझौतों के तहत, कच्चाथीवू द्वीप भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंकाई हिस्से पर स्थित है। किसी राजनीतिक अभियान में बलि का बकरा ढूंढ़ना सबसे आसान है। वह कौन होगा?)
कांग्रेस नेता जयराम रमेश का x पर लिखा गया बयान सीधे तौर पर प्रधानमंत्री विदेश मंत्री भारत सरकार को कटघरे में खड़ा कर रहा है कांग्रेस पार्टी का दावा है कि प्रधानमंत्री से लेकर उनके विदेश मंत्री तक सभी कच्चातिवु द्वीप के मुद्दे को उछाल कर इस चुनाव में राजनीतिक लाभ लेना चाहते हैं यहां यह समझाना जरूरी है कि आखिर यह मुद्दा राजनीतिक पटल पर और चुनावी कैंपेन में कैसे आया ।
भारतीय जनता पार्टी की तमिलनाडु यूनिट के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने एक आरटीआई के जरिए जो जानकारी हासिल की है उसके मुताबिक तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने एक समझौता के तहत कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को हैंडोवर कर दिया था बीजेपी पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू और अब इंदिरा गांधी पर भारत की संप्रभुता और एकता के साथ समझौता करने के आरोप लगाती रही है भारतीय जनता पार्टी का आरोप रहा है की पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी तक कांग्रेस के इन सभी पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत की टेरिटोरियल इंटीग्रिटी को बचाए रखने में बहुत ही लचर रवैया अपनाए रखा। भारतीय जनता पार्टी पंडित नेहरू पर भारत का एक बहुत बड़ा भूभाग चीन के हवाले करने का आरोप लगाती रही है और आज देश में मौजूद तमाम आंतरिक समस्याओं के लिए और बाह्य समस्याओं के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू की डोमेस्टिक पॉलिसी और एक्सटर्नल पॉलिसी को जिम्मेदार ठहरती रही है।
कमोबेश यही स्थिति इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री काल में लिए गए फैसलों को लेकर भी है दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी मौजूदा समय में भारत सरकार पर चीन के सामने झुकने के आरोप लगा रही है! कांग्रेस पार्टी का आरोप है की मौजूदा वक्त में चीन ने भारत के एक बहुत बड़े भूभाग पर कब्जा कर रखा है और मौजूदा सरकार चीन के द्वारा किए गए अनाधिकृत कब्जे पर कोई आक्रामक तरीका अख्तियार किए बगैर उसको वापस लेने में विफल रही है कांग्रेस पार्टी की इन आरोपों को और मजबूती देने के लिए भारतीय जनता पार्टी से नाराज चल रहे डॉक्टर सुब्रमण्यम स्वामी ने भी मौजूदा भारत सरकार की आर्थिक और विदेश नीति की खुली आलोचना शुरू कर दी है।
राजनीतिक तौर पर भारतीय जनता पार्टी भले ही पंडित जवाहरलाल नेहरू और श्रीमती इंदिरा गांधी के विदेश नीतियों की आलोचना कर रही हो लेकिन यह भी ऐतिहासिक सच्चाई है की पंडित जवाहरलाल नेहरू ही आधुनिक भारत के निर्माता के रूप में जाने जाते हैं पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के चलते भारत को पूरी दुनिया के डिप्लोमेटिक पटल पर एक अलग पहचान मिली थी! पंडित नेहरू का NON-ALLIGNMENT MOVEMENT ,पंचशील के सिद्धांत तत्कालीन दौर में खास तौर से डेवलपिंग कंट्रीज के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान के रूप में देखा जाता है।
श्रीमती इंदिरा गांधी की एग्रेसिव विदेश नीति के चलते ही पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए अमेरिका जैसे शक्तिशाली देश को इंदिरा गांधी ने हमेशा अपनी शर्तों पर शर्तों पर रहने के लिए मजबूर किया। भारत को आंतरिक और विदेशी मामलों में एक अलग पहचान दिलाई !राजनीति के लिए भले कच्चा तिबू का मुद्दा उछाल कर तमिलनाडु में अपना-अपना वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश होती रही हो लेकिन यह भी सच्चाई है कि श्रीलंका हमारा पड़ोसी मुल्क है श्रीलंका में भारत का बहुत ही ज्यादा stake है अगर श्रीलंका भारत से दूरी बनाकर चीन के गोद में जाकर बैठ जाएगा तो उसका राजनीतिक खामियाजा सबसे ज्यादा भारत को ही उठाना पड़ेगा।
शायद यही कारण है की पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी राजीव गांधी तक सभी पूर्व प्रधानमंत्री ने श्रीलंका के साथ बेहतर डिप्लोमेटिक रिलेशंस बनाए रखने की कोशिश की थी। चीन को श्रीलंका से दूर रखने की कोशिश में राजीव गाँधी ने IPKF भेजा था!इसलिए इस तरह के कच्चातिवु द्वीप जैसे संवेदनशील मुद्दों को उछलने से पहले भारत के लार्जर इंटरेस्ट को ध्यान में रखना चाहिए तमिलनाडु की डीएमके और कांग्रेस पार्टी एक एलायंस के तहत लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी को संवेदनशील मुद्दों के बजाय राजनीतिक मुद्दों को उछालकर और डीएमके सरकार की खामियों को जनता के बीच में ले जाकर इस चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने की कोशिश करनी चाहिए।
डीएमके पहले से ही भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अग्रसिव पॉलिटिक्स करती रही है चाहे वह सनातन धर्म का मामला हो या राज्यपाल के जरिए केंद्र की सरकार को चुनौती देने का मामला, डीएमके की सरकार जनता की अदालत से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक में तमिलनाडु के राज्यपाल की भूमिका केंद्र सरकार की अनावश्यक दखलअंदाजी का मुद्दा उठती रही है इस चुनाव में भी डीएमके और उसकी सरकार की तरफ से तमिलनाडु के मौजूदा राज्यपाल के कार्यशाली उनकी अनावश्यक दखलअंदाजी का मुद्दा उछाला जा रहा है डीएमके और कांग्रेस का आरोप है की मौजूदा केंद्र की सरकार राज्यपालों और केंद्रीय जांच एजेंटीयों के माध्यम से भारत के फेडरल स्ट्रक्चर को कमजोर करने की कोशिश कर रही है कांग्रेस पार्टी की तरफ से तो लगातार आरोप लगाए जा रहे हैं कि केंद्र सरकार की नीतियों के कारण भारत के संघीय ढांचे के लिए खतरा पैदा हो रहा है।
अब देखना है कि दक्षिण भारत और खास तौर पर तमिलनाडु की जनता भारतीय जनता पार्टी की चुनावी आख्यान पर कितना भरोसा करती है।