(वाशिंद्र मिश्रा) यह सच है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पिछले वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज विकसित होने वाली अर्थ व्यवस्थाओं में से एक है।
मोदी सरकार के आंकड़ों के मुताबिक India is one of the fastest growing economy of the world !लेकिन वहीं दूसरी तरफ उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। 2014 के पहले देश पर कुल कर्ज लगभग 56 लाख करोड़ का था जो अब बढ़कर 205 लाख करोड़ हो गया है !देश पर बढ़ते कर्ज को लेकर कांग्रेस पार्टी सहित तमाम विपक्षी पार्टियों भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की सरकार को जिम्मेदार कर रही है! गैर भाजपा दलों का आरोप है कि नरेंद्र मोदी की सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के चलते देश की अर्थव्यवस्था बदहाल स्थिति में पहुंच गई है। बदहाल अर्थव्यवस्था के चलते देश की जनता को महंगाई बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझना पड़ रहा। गैर भाजपा दलों का आरोप है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान भटकने के लिए जज्बातों मुद्दों को उछलते रहते हैं। कांग्रेस पार्टी के महासचिव और मीडिया इंचार्ज जयराम रमेश ने एक बयान जारी करके प्रधानमंत्री से कुछ सवाल पूछे हैँ। जयराम रमेश के मुताबिक भारतीय अर्थव्यवस्था में जितने भी खतरे की घंटियां बज रही हैं वह केवल प्रधानमंत्री को ही नहीं सुनाई दे रही हैं उनके कार्यकाल में भारत में बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई। महंगाई आसमान छू रही है वास्तविक मजदूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है कई क्षेत्रों में गिरावट ही आई है ग्रामीण भारत गंभीर संकट से जूझ रहा है और असमानता चरम सीमा पर पहुंच गई है।
- क्या इस बार के लोकसभा चुनाव में देश की अर्थव्यवस्था और उससे जुड़े हुए मुद्दे प्रमुख मुद्दों में शामिल होंगे?
- क्या देश की जनता और मतदाता देश की अर्थव्यवस्था, देश पर बढ़ते कर्ज, देश में बढ़ती बेरोजगारी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपना वोट देगी?
वित्तीय और निवेश सेवाएं प्रदान करने वाली एक कंपनी की ताजा रिपोर्ट प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों का भारतीय परिवारों पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाते हैं। जय राम रमेश के अनुसार दिसंबर 2023 तक घरेलू कर्ज का अस्तर सकल घरेलू उत्पाद जिसको जीडीपी कहा जाता है का लगभग 40 परसेंट हो गया है। यह अब तक का सबसे अधिक है इसके अलावा घरेलू बचत भी 47 साल के निचले स्तर पर पहुंच गई है शुद्ध वित्तीय सेविंग्स जीडीपी के पांच परसेंट पर आ गई है। जय राम रमेश ने एक रिपोर्ट के हवाले से दावा किया है की बचत में यह आश्चर्य जनक गिरावट आय मे वृद्धि कम होने के कारण है।
इससे पता चलता है कि 2023 24 में निजी खपत और घरेलू इन्वेस्टमेंट ग्रोथ कम क्यों रही है, 23 –24 के पहले 9 महीना में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत जीडीपी के लगभग पांच प्रतिशत पर अपरिवर्तित थी। कम बचत का अर्थ है व्यापार और सरकारी निवेश के लिए कम पूंजी उपलब्ध होना और स्थिर विदेशी पूंजी पर बढ़ती निर्भरता, जय राम रमेश का कहना है कि असुरक्षित पर्सनल लोन में बढ़ोतरी घरेलू कर्ज के उच्च स्तर के लिए जिम्मेदार है ना कि होम लोन या कार लोन जैसा कि वित्त मंत्रालय विश्वास दिलाना चाहता है।
पर्सनल लोन में हाउसिंग के हिस्सेदारी वास्तव में 5 वर्षों में पहली बार 50 परसेंट से नीचे है और केवल हाई एंड ऑटोमोबाइल ही अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं जबकि बाजार में कारो दो पहिया वाहनों की बिक्री में बड़े पैमाने पर गिरावट आई है दिसंबर में गोल्ड लोन में भी चिंताजनक रूप से वृद्धि देखी गई है भावनात्मक लगाव को देखते हुए लोग सोने के आभूषण जैसी चीजों को गिरवी रखकर लोन केवल अंतिम उपाय के रूप में ही लेते हैं। जय राम रमेश का आरोप है कि मोदी सरकार भले ही इसे स्वीकार न करें लेकिन सच्चाई यह है की मजदूरी में बढ़ोतरी न होने और आसमान छूती महंगाई ने परिवारों को गुजर बसर करने के लिए ऋण लेने को मजबूर किया है।
वित्त मंत्रालय इसे जितना चाहे दावा करे लेकिन सच्चाई सबके सामने है जय राम रमेश के मुताबिक पैसा बचाना तो दूर भारतीय परिवार धीरे-धीरे कर्ज में डूबता जा रहे हैं जयराम रमेश ने नरेंद्र मोदी सरकार की विफलताओं की सूची भी जारी की है उनके मुताबिक रोजगार में लगभग शून्य वृद्धि 2012 और 19 के बीच केवल 0.01% नौकरियां जोड़े जबकि हर साल 70 से 80 लाख युवा श्रम बाल में शामिल होते हैं
2012 और 22 के बीच नियमित रूप से वेतन पाने वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी में गिरावट आई है भयंकर महंगाई के कारण श्रमिक अब 10 साल पहले की तुलना में कम खर्च कर पा रहे हैं! वित्त वर्ष 23 -24 में मनरेगा के तहत गरीब ग्रामीण परिवारों द्वारा मांगे गए कम दिनों की संख्या 305 करोड़ हो गई है 22-23 में यह 265 करोड़ थी मनरेगा में काम मांगने की संख्या में इस तरह की बढ़ोतरी होना ग्राम गंभीर ग्रामीण संकट का संकेत है कांग्रेस पार्टी सहित तमाम गैर बीजेपी दल इन आर्थिक मोचन पर मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने में जुटे हुए हैं अब तक के चुनाव परिणाम के विश्लेषण करने से यह बात साबित होती है कि देश के मतदाता ज्यादातर हुए चुनाव में आर्थिक मुद्दों के बजाय जज्बातों मुद्दों पर वोट देते रहे हैं। अगर सचमुच विकास अर्थव्यवस्था आंतरिक और विदेश नीतियों के मुद्दों पर वोट पड़ते तो उसका रिफ्लेक्शन चुनाव परिणाम में भी देखने को मिलता।
लेकिन आजादी के बाद से जितने भी चुनाव हुए हैं ज्यादातर चुनाव में वही दल कामयाब रहे जिन्होंने जज्बातों मुद्दों को उछलकर जनता से वोट मांगा और जनादेश हासिल किया !अब देखना है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में देश की जनता किन मुद्दों को ज्यादा तव्वजो देती है कई राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्र जारी हो चुके हैं चुनावी घोषणा पत्रों में बहुत ही ज्यादा लोक लुभावने वायदे किए जाते रहे हैं।