- दिल्ली जामिया विश्विद्यालय के प्रबंध तंत्र को बधाई
- UP बोर्ड की परिक्षाओं में सीतापुर के students ने फिर top किया
पहले UPSC और अब यूपी बोर्ड के परिणामों ने देश और समाज के अंदर शिक्षा के क्षेत्र में तेजी से हो रहे बदलाव का संकेत दे रहे है सामान्य तौर पर माना जाता रहा है की शिक्षा के क्षेत्र में साधन संपन्न वर्ग के लोगों का ही कब्जा रहा है संसाधन के दम पर महानगरों में अपने बच्चों को पढ़ाकर परीक्षाओं में कामयाबी दिलाने का एक लंबा इतिहास रहा है लेकिन यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन और बोर्ड की परीक्षाओं के परिणामों ने समाज में अपने संसाधनों के दम पर लंबे समय तक कब्जा जमाए ऐसे लोगों, वर्गों और शहरी क्षेत्र के लोगों के लिए एक कड़ी चुनौती पेश की है।
पिछले कई वर्षों से यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन की परीक्षाओं में जामिया मिलिया विश्वविद्यालय के छात्र- छात्राओं का आउटस्टैंडिंग परफॉर्मेंस रहा है दिल्ली स्थित जामिया विश्वविद्यालय अपने कैंपस के अंदर होनहार छात्रों के लिए बगैर शुल्क कोचिंग और आवासीय सुविधा मुहैया कराता रहा है और यहां पर पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं में सभी मजहब और वर्गों के छात्र शामिल रहते हैं यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन के परिणाम पर अगर नजर डाला जाए तो इस विश्वविद्यालय के कोचिंग सेंटर से पढ़कर कामयाबी हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं की तादाद काफी बड़ी है यह विश्वविद्यालय देश के तमाम विश्वविद्यालयों में से एक अलग ही पहचान रखता है यह अलग बात है कि जब यहां के छात्र-छात्राओं ने इन प्रतियोगी परीक्षाओं में कामयाबी हासिल करना शुरू किया तो मीडिया के एक वर्ग की तरफ से इस विश्वविद्यालय पर मजहबी रंग चढाने की कोशिश की गई परिणाम स्वरूप देश के सर्वोच्च अदालत ने ऐसे टीवी चैनलों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए सरकार को निर्देश भी जारी किया था।
एक बार फिर इस विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं ने शानदार कामयाबी हासिल की है और इस कामयाबी के लिए न केवल छात्र-छात्राएं बल्कि इस कोचिंग सेंटर को चलाने वाले सभी शिक्षक शिक्षिकाएं और विश्वविद्यालय का प्रबंध तंत्र भी बधाई का पात्र है।
जहां तक निशुल्क कोचिंग चलाने की योजना का सवाल है तो यह योजना बहुत पुरानी है वर्ष 84 – 85 में केंद्र सरकार की तरफ से देश के चुनिंदा विश्वविद्यालय में आर्थिक रूप से कमजोर छात्र-छात्राओं के लिए कैंपस के अंदर ही निशुल्क कोचिंग पढ़ने की व्यवस्था शुरू की गई थी। यह अलग बात है की सरकार की इस योजना का लाभ देश के बाकी विश्वविद्यालय में चलने वाले सेंटर्स के मुकाबले जामिया मिलिया का कोचिंग सेंटर ज्यादा प्रोफेशनल तरीके से उठाता रहा और उसका लाभ प्रतियोगी परीक्षाओं में हिस्सा लेने वाले छात्र-छात्राओं को मिलता रहा है
दूसरी ओर जिस तरह के अभ्यर्थी यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन जैसी टफेस्ट परीक्षा को उत्तीर्ण होने में कामयाब रहे हैं उससे एक बात और साबित हो रही है कि समाज का पूरा का पूरा सोशियो इकोनामिक डायनॉमिक्स बहुत तेजी से बदल रहा है।
इससे एक बात और साबित हो रही है कि संसाधन और जोड़ तोड़ के दम पर यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में कामयाबी हासिल नहीं की जा सकती ठीक इसी तरह से बोर्ड के परीक्षाओं के परिणाम भी शिक्षा के क्षेत्र में एकाधिकार बनाए हुए वर्गों के लोगों के लिए चुनौती पेश कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश बोर्ड की परीक्षाओं के परिणाम से यह बात साबित हो रही है कि अब बेहतर शिक्षा सिर्फ महानगरों और और संसाधनों के दम पर हासिल नहीं की जा सकती महानगरों की तुलना में दूर दराज के इलाक़ों में भी चलने वाले विद्यालयों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं शहरी क्षेत्र में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं की तुलना में ज्यादा मेधावी हैं ज्यादा मेहनती हैं और ज्यादा बेहतर परिणाम हासिल करने वाले हैं। यूपी बोर्ड की इस बार की परीक्षा में भी टॉप करने वाले ज्यादातर लड़के लड़कियां उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगे ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाले विद्यालयों के हैं शहरों में कोचिंग सेंटर्स पैसा कमाने का एक जरिया बन गया है । शहरी क्षेत्र में पढ़ने वाले छात्र-छात्राएं और चलने वाले स्कूल चमक और भौतिकवादी संस्कृति से ज्यादा प्रभावित है शायद यही कारण है कि जब मेरिट के दम पर परीक्षाओं को उत्तीर्ण करने का वक्त आता है तो शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्र के छात्र-छात्राएं अच्छा मुकाम हासिल कर लेते हैं।
एक और महत्वपूर्ण संकेत इन प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणामों से देखने को मिल रहा है इन परिणामों के आधार पर कहा जा सकता है कि समाज का वह कमजोर तबका अब ज्यादा जागरूक ,ज्यादा सजग और अपने हक और हुकुम के लिए ज्यादा चौकन्ना हो गया है उसको इस बात का एहसास हो गया है कि संसाधनों की कमी के बावजूद कठिन परिश्रम और डिटरमिनेशन के दम पर अपने लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है शायद यही कारण है की इन प्रतियोगी परीक्षाओं में टॉप 10 पोजीशन हासिल करने वाले छात्र-छात्राओं में ज्यादातर बच्चे इसी तबके से आते हैं और आ रहे हैं जो की संसाधनों की कमी के बावजूद अपना मुकाम हासिल करना चाहते हैं।