दिल्ली 26 अप्रैल। ई वी एम और स्त्री धन के मामले में सुप्रीम कोर्ट के दो ऐतिहासिक फैसलों ने देश की राजनीति में एक नया आयाम जोड़ दिया है स्त्री धन और ई वी एम दो ऐसे विषय रहे हैं जिनको लेकर पिछले कई वर्षों से अदालतों के अंदर और बाहर डिबेट देखने को मिलता रहा है हम सबसे पहले ईवीएम के बारे में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए फैसले का विश्लेषण करेंगे
और उसके बाद स्त्री धन को लेकर भी देश की सबसे बड़ी अदालत का जो नजरिया है उससे अवगत कराएंगे।
हम सब जानते हैं कि 2009-10 में सबसे पहले ई वी एम की जगह बैलेट पेपर के माध्यम से चुनाव कराने की मांग भारतीय जनता पार्टी के नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने की थी। लालकृष्ण आडवाणी के करीबी बीजेपी के तमाम बड़े नेताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की निष्पक्षता उसके विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा किया था तब से यह विवाद चल रहा था।
2014 में जब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी को देश के सत्ता की बागडोर मिली तो सभी गैर भाजपा दलों के नेताओं ने एक बार फिर ई वी एम के मुद्दे को देश की जनता की अदालत से लेकर सर्वोच्च अदालत तक में पहुंचा दिया। सुप्रीम कोर्ट में लगभग एक दर्जन संगठनों की तरफ से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन की जगह वैलेट पेपर से चुनाव कराने की याचिकाएं दाखिल की गई थी
इन याचिकाओं में याचिकर्ताओं की तरफ से निर्वाचन आयोग से चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने की मांग की गई थी सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने गहन समीक्षा और सुनवाई के बाद इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने की पुरानी व्यवस्था को बहाल करने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है की ई वी एम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव कराने के लिए पेटीशनर्स की तरफ से कोई ठोस दलील पेश नहीं की जा सकी सुप्रीम कोर्ट ने अपेक्षा की है की संवैधानिक संस्थाओं के क्रेडिबिलिटी बचाए रखने की जिम्मेदारी सब की है इसलिए बगैर किसी ठोस प्रमाण के संवैधानिक संस्थाओं के विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करना उचित नहीं सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने निर्वाचन आयोग और भारतीय जनता पार्टी को एक बहुत बड़ी रिलीफ दी है
वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनाव प्रचार के बीच में गैर भाजपा दलों के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद कांग्रेस पार्टी ने खुद को दूरी बनाए रखते हुए साफ किया है कि उसकी तरफ से कोई पिटीशन फाइल नहीं किया गया था कांग्रेस पार्टी की तरफ से अपने बचाव में 2009 में बीजेपी के शीर्ष नेता लाल कृष्ण आडवाणी द्वारा ईवीएम के खिलाफ दिए गए बयानों का हवाला दिया गया है
तार्किक तौर पर भले कांग्रेस पार्टी बचाव करने में सफल दिखाई दे रही हो लेकिन सच्चाई यह है की सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले ने सभी बीजेपी विरोधी दलों को कटघरे में खड़ा कर दिया है
दूसरा महत्वपूर्ण फैसला स्त्री धन पर कानूनी अधिकार का है हम सब जानते हैं कि भारतीय परिवारों में स्त्री धन पर अधिकार को लेकर हमेशा से विवाद और तकरार रहा है और समय-समय पर अधिकार को लेकर अदालत में भी याचिकाएं दाखिल होती रही है
सुप्रीम कोर्ट की तरफ से स्त्री धन पर अधिकार के बारे में भी बहुत ही ऐतिहासिक फैसला आया है सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है की स्त्री धन पर एकमात्र स्त्री का ही अधिकार होता है स्त्री धन पर स्त्री को उसके अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता
इस तरह से इन दो फैसलों ने जहां एक तरफ राजनीतिक दलों में खलबली पैदा कर दी है वहीं दूसरी तरफ भारतीय परिवारों में तकरार के मुद्दे को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया है