
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
नई दिल्ली 17 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने असम में नागरिकता से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसमें नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए को वैध करार दिया गया है। यह निर्णय असम में अप्रवासियों की नागरिकता को लेकर जारी विवाद पर केंद्रित है, जो दशकों से राजनीतिक और सामाजिक चर्चा का प्रमुख विषय रहा है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असर न केवल असम बल्कि पूरे देश की राजनीति और नागरिकता कानूनों पर पड़ सकता है।
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए को असम समझौते के तहत 1985 में लागू किया गया था। असम समझौता एक महत्वपूर्ण राजनीतिक और सामाजिक दस्तावेज है, जिसे असम आंदोलन के बाद तैयार किया गया था। असम आंदोलन 1979 से 1985 तक चला, जिसमें बड़ी संख्या में अप्रवासियों के अवैध रूप से राज्य में प्रवेश और वहां की जनसांख्यिकी संरचना में परिवर्तन का मुद्दा उठाया गया था। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य असम में अवैध अप्रवासियों की पहचान करना और उन्हें वापस भेजने की मांग करना था। इस आंदोलन के बाद सरकार और आंदोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ, जिसे असम समझौते के रूप में जाना जाता है। असम समझौते के तहत 1966 से 1971 के बीच असम में प्रवेश करने वाले अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया गया था। धारा 6ए के अनुसार, जो लोग 1 जनवरी 1966 से 24 मार्च 1971 के बीच असम में आए थे, उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान की जाएगी, जबकि 25 मार्च 1971 के बाद आने वालों को अवैध अप्रवासी माना जाएगा। यह प्रावधान असम की विशिष्ट जनसांख्यिकी और सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला, धारा 6ए की वैधता बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखा है। अदालत ने स्पष्ट किया कि संसद के पास इस मुद्दे पर कानून बनाने की पूर्ण शक्ति है और धारा 6ए किसी भी अन्य प्रावधान के साथ विरोधाभासी नहीं है। यह फैसला उन याचिकाओं के खिलाफ आया है, जिनमें धारा 6ए को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी। अदालत ने यह भी कहा कि धारा 6ए का प्रावधान असम की विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है और यह प्रावधान न तो अत्यधिक व्यापक है और न ही अत्यधिक संकीर्ण। अदालत के अनुसार, यह प्रावधान असम में जनसांख्यिकी संतुलन बनाए रखने और सामाजिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था।
धारा 6ए और असम की जनसांख्यिकी पर प्रभाव
असम की जनसांख्यिकी संरचना में पिछले कई दशकों से अप्रवासियों के आगमन के कारण महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं। विशेष रूप से बांग्लादेश से आने वाले अप्रवासी इस बदलाव का मुख्य कारण रहे हैं। धारा 6ए के तहत 1966 से 1971 के बीच आए अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करने से असम की जनसांख्यिकी में स्थिरता लाने का प्रयास किया गया था। हालांकि, इस प्रावधान के बावजूद, असम में अवैध अप्रवासियों का मुद्दा लगातार विवाद का विषय बना हुआ है।
सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण: संसद की शक्तियों की पुष्टि
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि संसद के पास कानून बनाने की शक्ति है और धारा 6ए इस शक्ति के तहत बनाया गया एक वैध प्रावधान है। अदालत ने कहा कि संसद को नागरिकता के मुद्दे पर निर्णय लेने का अधिकार है और अदालतें इस विषय में हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं, जब तक कि कोई प्रावधान संविधान का उल्लंघन न कर रहा हो। अदालत के अनुसार, धारा 6ए संविधान के किसी भी प्रावधान के खिलाफ नहीं है और इसे असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता।
असम के विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर असम के विभिन्न संगठनों और राजनीतिक दलों ने मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। कुछ संगठनों ने इस फैसले का समर्थन किया है, जबकि अन्य ने इसका विरोध किया है। असम गण परिषद (AGP), जिसने असम आंदोलन का नेतृत्व किया था, ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा है कि यह असम समझौते के मूल उद्देश्यों की पुष्टि करता है। वहीं, कुछ अन्य संगठनों और राजनीतिक दलों का कहना है कि यह फैसला असम की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के लिए खतरा हो सकता है।
विरोध करने वालों के तर्क
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ कई संगठनों और दलों ने आपत्ति जताई है। उनका तर्क है कि धारा 6ए के तहत अप्रवासियों को नागरिकता प्रदान करना असम की मूल जनसंख्या और संस्कृति को खतरे में डाल सकता है। विरोध करने वाले संगठनों का कहना है कि यह प्रावधान असम की सामाजिक संरचना को बदल सकता है और राज्य की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को कमजोर कर सकता है।
समर्थन करने वालों के तर्क
वहीं, इस फैसले का समर्थन करने वाले संगठनों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला संविधान और असम समझौते की मूल भावना के अनुरूप है। उनके अनुसार, धारा 6ए एक संतुलित और विवेकपूर्ण प्रावधान है, जो असम की विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि यह प्रावधान असम में जनसांख्यिकी संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक था और इसे हटाने से राज्य में और भी अधिक अस्थिरता पैदा हो सकती थी।
राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का असम की राजनीति और समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। यह फैसला राज्य में नागरिकता और अप्रवासन के मुद्दे पर चल रही बहस को नया मोड़ दे सकता है। असम में पिछले कुछ वर्षों में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के मुद्दे पर भी व्यापक विरोध और समर्थन देखा गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला नागरिकता के मुद्दे पर जारी विवाद को और बढ़ा सकता है।
असम की राजनीति में संभावित बदलाव
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद असम की राजनीति में भी बदलाव की संभावना है। राज्य के कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे पर अपने रुख को स्पष्ट करना शुरू कर दिया है। असम के कुछ प्रमुख राजनीतिक दल इस फैसले के समर्थन में हैं, जबकि अन्य इसे असम की सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान के लिए खतरा मान रहे हैं। आने वाले चुनावों में यह मुद्दा राजनीतिक बहस का केंद्र बन सकता है और राज्य की राजनीतिक संरचना को प्रभावित कर सकता है।
कानूनी और राजनीतिक चुनौतियां
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अंतिम नहीं है। इस फैसले के बाद भी असम में नागरिकता और अप्रवासन के मुद्दे पर कानूनी और राजनीतिक चुनौतियां बनी रह सकती हैं। कुछ संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर करने की योजना बनाई है, जबकि अन्य इस मुद्दे को राजनीतिक मंच पर उठाने की तैयारी कर रहे हैं। इसके अलावा, राज्य में NRC और CAA के मुद्दे पर भी विवाद जारी है, जो आने वाले समय में और गहराता जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला असम में नागरिकता और अप्रवासन के मुद्दे पर एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। अदालत ने धारा 6ए की वैधता को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया है कि संसद को इस मुद्दे पर कानून बनाने की पूर्ण शक्ति है। यह फैसला असम की विशिष्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए किया गया है, जो राज्य की जनसांख्यिकी और सामाजिक संरचना को स्थिर रखने के प्रयास का हिस्सा है। हालांकि, इस फैसले के बाद असम में राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता का खतरा बना हुआ है।