
(वसिंद्र मिश्र) लखनऊ। अयोध्या एक बार फिर चर्चा में है इस बार चर्चा में रहने का सबसे बड़ा कारण दो दिन पहले हुई बारिश है। बारिश के चलते अयोध्या में आई तबाही है अयोध्या जो कि पूरी दुनिया में चर्चा का विषय रहा। कुछ महीने पहले तक हो रहे राम मंदिर निर्माण को लेकर राम मंदिर में हुई प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के दिन पूरे देश दुनिया से जुटे अति विशिष्ट मेहमानों के चलते। आज वही अयोध्या चर्चा में है वहां खराब प्रशासन को लेकर, खराब बुनियादी ढांचा को लेकर, जल निकासी को लेकर, जलभराव को लेकर, नवनिर्मित सड़कों के धंस जाने को लेकर, नए बने रेलवे स्टेशन के बाहर हुए जलभराव को लेकर, रेलवे स्टेशन के बाहरी दीवार के गिरने को लेकर। आखिर क्या कारण है कि जो अयोध्या कुछ महीने पहले तक पूरी दुनिया में अपने मेगा शो के आयोजन के लिए अपने वर्ल्ड क्लास इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए विश्व के सुंदरतम नगर के रूप में विकसित होने को लेकर चर्चा में था। वही अयोध्या खराब बुनियादी ढांचा को लेकर, जलभराव को लेकर, मोहल्ले में भारी गंदगी को लेकर पूरी दुनिया में और खासतौर से भारत में विवादों में है चर्चा में है। कार्यवाहियों का सिलसिला शुरू हो गया है जैसा कि हर दुर्घटना और हादसे के बाद होता है सरकारी तौर पर एक-दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाने का दौर भी शुरू हो गया। राज्य सरकार ने जो कार्यदाई एजेंसी थी उसके खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया है और उसके कर्ताधर्ताओं को नोटिस जारी किया है। इसके अलावा अयोध्या का विकास कार्य देख रहे हैं इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई हुई है। प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हुई है और जहां जहां जो खामियां नजर आई हैं उसको दुरुस्त करने की कार्रवाई युद्धस्तर पर चल रही है। लेकिन सवाल इतना ही नहीं है सवाल ये है कि जिस अयोध्या को विकसित करने के लिए इस अयोध्या को वर्ल्ड क्लास सिटी बनाने के लिए जिस अयोध्या को विश्व धरोहर के रूप में फिर से स्थापित करने के लिए हजारों करोड़ों रुपया खर्च किया गया सरकारी खजाने से। आखिर कहां लापरवाही रही कि वह अयोध्या इतने हजार करोड़ों रुपया खर्च करने के बावजूद बरसात के पहले ही दिन पूरी तरह से ध्वस्त होता दिखाई दिया उसका ढांचा चरमरा गया। जल निकासी का कहीं कोई व्यवस्था नहीं था।
नवनिर्मित राम मंदिर के अंदर भी पानी के टपकने की शिकायतें आई वहां के मुख्य पुजारी सतेंद्र दास ने आरोप लगा दिया कि बारिश की वजह से नवनिर्मित राम मंदिर के अंदर भी पानी टपका जिसको बाद में राम मंदिर न्यास और वहां के व्यवस्थापकों की तरफ से खंडन किया गया और कहा गया कि मंदिर के अंदर किसी भी तरह का कोई रिसाव या कोई खामी नहीं है। लेकिन मंदिर के बाहर चाहे राम पथ मार्ग का मामला हो या रेलवे स्टेशन के बाहर की व्यवस्था हो निर्माण कार्य हो या और भी तमाम इस तरह के जो इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में काम हुए पूरी तरह से एक ही दिन की बारिश में क्यों ध्वस्त होते दिखाई दिए है?
आखिर इसके लिए क्या केवल इंजीनियर्स ही जिम्मेदार है या सिर्फ प्रशासनिक अधिकारी जिम्मेदार है? क्या वहां जो कार्यदाई संस्था थी वह जिम्मेदार है? अखबारों में छपी खबरों पर अगर भरोसा किया जाए और सरकारी सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उस पर अगर भरोसा किया जाए तो बताया जा रहा है कि अयोध्या के पुनर्निर्माण के लिए उसके विकास के लिए उसको विश्व स्तर पर एक सबसे खूबसूरत शहर बनाने के लिए जिस एजेंसी को ठेका दिया गया था का सरोकार गुजरात से है और उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से उस एजेंसी को भी नोटिस दिया गया अभियंताओं को कुछ को निलंबित किया जा चुका है और जांच की जिम्मेदारी मंडलायुक्त को सौंप दी है लेकिन बताया यह जा रहा है कि जिस चीफ इंजीनियर को जिम्मेदारी दी गई थी अयोध्या का कार्यभार देखने के लिए अयोध्या के विकास का भी पीडब्लूडी के उसी चीफ इंजीनियर के पास डुअल चार्ज था ब्रिज कॉरपोरेशन का उसी तरह से जिस एक अधिकारी को वहां एडवाइजर बनाया गया था उस अधिकारी की भूमिका भी संदेह के घेरे में है आखिर अयोध्या जी से संवेदनशील प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की इस ड्रीम प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी ऐसे लोगों को क्यों दी गई जिनके पास की एक से ज्यादा दायित्व था क्या उत्तर प्रदेश में काबिल अधिकारियों की कमी थी? क्या उत्तर प्रदेश में ऐसे योग्य अभियंताओं की कमी थी जिनको कि डेडिकेटेड तौर पर अयोध्या के पुनर्निर्माण उसके जीर्णोद्धार उसके सौंदर्यीकरण का दायित्व नहीं जा सकता था दूसरी जो सबसे बड़ी खामी प्रारंभिक तौर पर देखने को मिल रही है कि जल निगम की तरफ से पाइप तो जमीन के अंदर डाला गया लेकिन उसके जल निकास की व्यवस्था नहीं की गई इसी तरह से रेलवे स्टेशन जो पुराना रेलवे स्टेशन है और नया रेलवे स्टेशन जो बना उसके बीच में जल निकासी की व्यवस्था नहीं थी। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रोजेक्ट को पूरा करने में जल्दीबाजी की गई क्योंकि प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम समयबद्ध तरीके से होना था और अगर सारे मानकों को पूरा करके इस काम को किया जाता तो शायद प्राण प्रतिष्ठा का कार्य समयबद्ध तरीके से नहीं हो पाता। इसलिए जल्दीबाजी की गई निर्माण कार्यों में सीवेज और पानी का ड्रेनेज की व्यवस्था करने में और यही कारण रहा की जो पहली बारिश हुई तो वहां की पूरी की पूरी व्यवस्था चरमरा गई लेकिन कुछ लोग यहीं का है की ठेकेदारी में जिस तरह की कमीशन बाजी और भ्रष्टाचार हुआ जिस तरह से क्वालिटी के साथ समझौता किया गया जिस तरह से अधिकारियों की तरफ से जो सुपरवाइजिंग एजेंसी थी उनकी तरफ से अपने दायित्वों की अनदेखी की गई और ठेकेदारों को और कार्यदाई एजेंसी को पूरी तरह से छूट दे दी गई मनमाने तरीके से काम करने का उसी का नतीजा है की अयोध्या में एक तरह से हम कहें तो पूरी तरह से हजारों करोड़ रुपये की बर्बादी हो गई और मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री की छवि को भी बट्टा लगा और उनके साख को भी बट्टा लगा क्योंकि यह प्रोजेक्ट योगी आदित्यनाथ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट था मुख्यमंत्री लगभग हर हफ्ते सीधे तौर पर अयोध्या जाते थे और वहां चल रहे विकास कार्यों की समीक्षा करते थे बावजूद इसके इतनी बड़ी चूक हुई और इस चूक के लिए वहां जो अभियंताओं को दंडित करके वहां जो कुछ ठेकेदारों को दंडित करके बड़ी खामियों पर पर्दा नहीं डाला जा सकता जिन खामियों की वजह से सरकारी खजाने का हजारों करोड़ रुपये बर्बाद हुआ है सरकारी खजाने की बर्बादी के साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार के साख गिरी है और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के कार्य कुशलता और उनके नेतृत्व पर भी सवाल खड़ा किया गया है कि क्या मुख्यमंत्री का दबदबा मुख्यमंत्री का कंट्रोल अपने मातहत काम कर रहे अधिकारियों पर नहीं है क्या मुख्यमंत्री का इकबाल अब अधिकारियों और कार्यदाई एजेंसी पर से घटता जा रहा है तमाम ऐसे सवाल है इसका उत्तर खोजना जरूरी है और उन सभी लोगों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्रवाई होना चाहिए जिनके चलते कि उत्तर प्रदेश के साख पूरे देश में गिरी है दुनिया में यह पहली घटना नहीं है जब जीर्णोद्धार के नाम पर जो वहां काम हुए हैं इन कामों को लेके सरकारों की साख गिरी है इसके पहले मध्य प्रदेश में महाकाल उज्जैन में जब कॉरिडोर का निर्माण हुआ था और महाकाल के जीर्णोद्धार और कॉरिडोर के वक्त जिस एजेंसी को ठेका दिया गया था महाकाल कॉरिडोर को पूरा करने के लिए वहाँ जो सप्तऋषियों की मूर्तियां लगी थी वह मूर्तियां भी एक ही आधी तूफान में खंडित हो गई थीं महाकाल के बाहर लगी सब ऋषियों की मूर्तियों के मुड़ने की घटना भी पूरे देश में चर्चा की विषय रही और उसमें भी बताया गया था कि कार्यदायी एजेंसी का संबंध गुजरात से था बाद में उस कार्यदायी एजेंसी के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई?
आखिर क्यों उन मानकों का पालन उस कार्यदायी एजेंसी ने नहीं किया जिन मानकों के तहत वहां मूर्तियों की स्थापना होनी थी ये तो मध्यप्रदेश की सरकार बताएगी वो कार्यदाई एजेंसी बताएगी। लेकिन ये अयोध्या की घटना ने महाकाल की उस घटना को ताजा कर दिया है उसकी याद को ताजा कर दिया है इसलिए सरकारी एजेंसियों को कार्यवाही संस्था को इस तरह के संवेदनशील परियोजनाओं में काम करते समय बेहद सावधानी और चौकसी बरतनी चाहिए जिससे उनकी किसी भी लापरवाही का खामियाजा सरकार के साख सरकार की छवि पर ना पड़े और सरकार को उसका नुकसान न उठाना पड़े।