
पटना, 7 अप्रैल। बिहार में पिछले कई हफ्तों से बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा में भ्रष्टाचार के मुद्दों को लेकर चली “पलायन रोको, नौकरी दो यात्रा” अब अपने निर्णायक चरण में पहुँच चुकी है। भितिहरवा गांधी आश्रम से शुरू हुई इस यात्रा का समापन आज पटना में हो रहा है, जहाँ भारतीय युवा कांग्रेस (IYC) और नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) के शीर्ष नेतृत्व ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने का अनुरोध किया है। दोनों संगठनों ने 11 अप्रैल को एक प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से मुख्यमंत्री से मुलाकात कर छात्रों की समस्याओं को प्रत्यक्ष रूप से सामने रखने की योजना बनाई है।
इस ऐतिहासिक यात्रा के पीछे मुख्य उद्देश्य था बिहार के युवाओं के सामने मौजूद उन ज्वलंत समस्याओं को उजागर करना, जिन्हें पिछले कई वर्षों से नज़रअंदाज किया जाता रहा है। बेरोजगारी, पेपर लीक, भर्ती घोटाले और वर्षों से लंबित सरकारी भर्तियों ने युवाओं को हताश कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप एक बड़ी संख्या में युवा रोजगार की तलाश में बिहार छोड़ने को मजबूर हैं। NSUI अध्यक्ष वरुण चौधरी और IYC अध्यक्ष उदय भानु चिब ने मुख्यमंत्री को लिखे अपने पत्र में इस बात पर जोर दिया है कि राज्य का युवा अब चुप नहीं बैठेगा।
भितिहरवा गांधी आश्रम से शुरू हुई यह यात्रा प्रतीकात्मक रूप से गांधीवादी सिद्धांतों को आत्मसात करते हुए एक शांतिपूर्ण जनआंदोलन में तब्दील हो गई। हज़ारों युवाओं ने इस यात्रा में भाग लिया, जिन्होंने विभिन्न जिलों में जनसभाओं के माध्यम से अपने विचार रखे। इन युवाओं ने अपने अनुभव साझा किए कि कैसे वे वर्षों से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन या तो परीक्षाएँ रद्द हो जाती हैं, या फिर घोटालों में फँस कर नतीजे नहीं आ पाते।
IYC और NSUI के संयुक्त अभियान में यह बात उभर कर सामने आई कि पलायन अब केवल एक सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि एक आर्थिक और राजनीतिक संकट बन चुका है। हर साल लाखों युवा बिहार से बाहर दूसरे राज्यों में नौकरी की तलाश में पलायन कर जाते हैं, जिससे न केवल राज्य की प्रतिभा का ह्रास हो रहा है, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था पर भी इसका गहरा असर पड़ रहा है। छात्र नेताओं का कहना है कि सरकार यदि समय रहते इस समस्या पर गंभीर नहीं हुई, तो राज्य का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।
पत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि 11 अप्रैल को यात्रा के समापन अवसर पर मुख्यमंत्री से मिलने का समय दिया जाए, ताकि छात्रों और युवाओं के एक प्रतिनिधिमंडल को अपनी बात कहने का मौका मिले। यह बैठक पूरी तरह संवादात्मक होगी, जिसमें संगठन के प्रतिनिधि एक मांगपत्र सौंपेंगे, जिसमें पेपर लीक मामलों की निष्पक्ष जांच, भर्ती परीक्षाओं के लिए समयबद्ध कैलेंडर, लंबित भर्तियों की त्वरित प्रक्रिया और नए रोजगार सृजन के लिए नीति निर्माण जैसे विषय शामिल होंगे।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजे गए पत्र में कहा गया है कि यह समय केवल भाषण देने का नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई का है। छात्रों और युवाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब वे केवल आश्वासन से संतुष्ट नहीं होंगे। वे चाहते हैं कि सरकार नौकरी देने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाए, और शिक्षा क्षेत्र में पारदर्शिता के साथ नियुक्तियाँ होनी चाहिए।
इस आंदोलन की एक विशेष बात यह भी रही कि इसमें केवल शहरी छात्र ही नहीं, बल्कि ग्रामीण इलाकों के युवा भी बड़ी संख्या में जुड़े। छात्रों ने सड़कों पर उतरकर नारे लगाए — “नौकरी नहीं तो सरकार नहीं”, “पलायन बंद करो, बिहार को बचाओ”, “पेपर लीक बंद करो, रोजगार दो”। इस यात्रा ने बिहार के हर जिले में सरकार के प्रति युवाओं की पीड़ा को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया।
छात्र संगठनों का यह भी कहना है कि यदि सरकार इस बार भी छात्रों की बातों को अनसुना करती है, तो यह आंदोलन एक बड़े जनांदोलन में परिवर्तित हो सकता है। युवाओं ने यह संकेत दिया है कि वे आने वाले समय में विधान सभा की ओर भी मार्च कर सकते हैं, और अपने संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे। उनका उद्देश्य किसी पार्टी का विरोध करना नहीं, बल्कि अपनी आवाज़ सत्ता के केंद्र तक पहुँचाना है।
यात्रा के समापन पर पटना में एक विशाल सभा का आयोजन किया गया है, जिसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्र शामिल होंगे। सभा के बाद एक प्रतिनिधिमंडल मुख्यमंत्री सचिवालय पहुँचेगा, जहाँ मांगपत्र सौंपा जाएगा। अब यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निर्भर करता है कि वे इन छात्रों की आवाज़ को कितनी गंभीरता से लेते हैं। क्या वे बिहार के युवाओं के भविष्य को संवारने के लिए आगे आएंगे, या यह एक और अनसुनी पुकार बनकर रह जाएगी — यह आने वाला समय तय करेगा।
यदि मुख्यमंत्री इस अनुरोध पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, तो यह बिहार की राजनीति में एक ऐतिहासिक मोड़ हो सकता है, जहाँ सरकार और युवा मिलकर राज्य के विकास की नई रूपरेखा तैयार करें। वहीं अगर मुलाकात नहीं होती, तो यह आंदोलन अगले चरण की ओर अग्रसर होगा — एक नए नेतृत्व की तलाश में, जो युवा आवाज़ों को ना केवल सुने, बल्कि समझे भी।