
नई दिल्ली, 21 जून। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Program – NCAP) को लेकर तीखा हमला बोला है। उन्होंने लिखा कि यह कार्यक्रम नीतिगत और तकनीकी रूप से गहराई से खराब विचारित (ill‑conceived) है । जयराम रमेश ने इसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी के रूप में PM₂. 2.5 माइक्रोन से छोटे कणों को पूरी तरह से दरकिनार करके केवल 10 माइक्रोन तक के कणों को मापने और उसकी निगरानी तक सीमित रहने को बताया। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन तथा अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों के अनुसार, PM₂. सीधे फेफड़े और हृदय की बीमारियों से जुड़ा होता है और हर साल हजारों मौतों का प्रमुख कारण बनता है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि PM₂. की सूक्ष्म प्रकृति के कारण वह गहराई से शरीर में प्रवेश करता है, इसलिए इसकी उपेक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिहाज़ से गंभीर भूल है।
उनके अनुसार, इस कमी के बावजूद, ज़मीनी स्तर पर फंड का उपयोग बेहद निराशाजनक रहा है। NCAP के तहत चुने गए 130 शहरों ने औसतन सिर्फ 70% से 78.5% तक फंड इस्तेमाल किया । लेकिन दिल्ली जैसे प्रदूषण से सबसे अधिक प्रभावित महानगर ने तो कुल आवंटन के सिर्फ 32.65% का ही खर्च किया ₹42.69 करोड़ में से केवल ₹13.94 करोड़ खर्च हुआ । NCR के पड़ोसी शहर फरीदाबाद ने केबल 26.7%, नोएडा ने मात्र 10% से कम, जबकि प्रधानमंत्री के क्षेत्र वाराणसी ने भी 48.85% फंड का उपयोग किया—यह सभी राष्ट्रीय औसत से काफी पीछे हैं ।
राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (National Clean Air Program-NCAP) कई स्तरों पर नीतिगत खामियों से ग्रसित है।
इसकी सबसे बड़ी कमी यह रही है कि इस कार्यक्रम का फोकस PM2.5 (2.5 माइक्रोन से छोटे कणों) के बजाय PM10 (10 माइक्रोन से छोटे कणों) को मापने और निगरानी तक सीमित कर दिया गया…
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) June 21, 2025
NCAP की तकनीकी और वित्तीय दोनों ही खामियों की वजह से इसका प्रभाव कमजोर पड़ा है। 2019 से 130 ‘non‑attainment’ शहरों में PM को 40% तक कम करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन PM₂. जैसे खतरे को नजरअंदाज करने से स्वास्थ्य लाभ सीमित रहे । CSE जैसे संस्थानों ने भी बताया कि निधियों के 64% खर्च सड़क धूल नियंत्रण पर हुए, जबकि वाहन, उद्योग और बायोमास जलन जैसे PM₂. संबंधी स्रोतों पर मात्र 12–15% खर्च हुआ—औद्योगिक उत्सर्जन पर तो सिर्फ 0.6% । इससे स्पष्ट होता है कि ‘आसान’ उपायों को प्राथमिकता दी गई और जटिल लेकिन स्वास्थ्य‑प्रधान चुनौतियों में ध्यान नहीं दिया गया।
जयराम रमेश ने इन कमियों को सुधारने के लिए NCAP में PM₂. को प्राथमिक मानदंड बनाए जाने, फंडिंग को लगभग ₹25,000 करोड़ तक बढ़ाकर इसे दो गुना करने, और शहर-स्तर पर प्रक्रियाओं में पारदर्शिता एवं जवाबदेही बढ़ाने की आवश्यकता बताई है । साथ ही उन्होंने वायु (प्रिवेंशन एवं कंट्रोल) अधिनियम 1981 और राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानक (2009) में संशोधन की भी वकालत की है—जहाँ PM₂. को केंद्रीय भूमिका दी जाए और वाहन, उद्योग, वैकल्पिक ऊर्जा तथा सार्वजनिक परिवहन जैसे प्राथमिक स्रोतों पर विशिष्ट जिम्मेदारी तय हो। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि ये नीतिगत दृष्टिकोण, तकनीकी दिशा और वित्तीय संरचना समय रहते पुनर्संसोधन और मजबूती के साथ लागू नहीं किया गया, तो NCAP सिर्फ एक औपचारिक योजना बनकर रह जाएगा, और वास्तविक जन स्वास्थ्य सुरक्षा इसी उपेक्षा के चलते जोखिम में बनी रहेगी।
1. नीतिगत त्रुटि: PM₂.की अनदेखी, स्वास्थ्य‑प्राथमिकता में भारी चूक।
2. वित्तीय अस्थिरता: दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद और वाराणसी जैसे शहरों में बेहद कम फंड उपयोग।
3. पूर्ण स्रोत नियंत्रण की कमी: बहुसंख्यक फंड सड़क धूल निवारण पर, जबकि वाहन, उद्योग और बायोमास पर कम खर्च।
4. सुधार की राह: PM₂. को प्राथमिकता में लाना, फंड डबल करना, कानूनी सुधार और जवाबदेही तंत्र मजबूत करना।
जयराम रमेश ने चेताया है कि यदि NCAP इन सुधारों को समय रहते नहीं अपनाता, तो यह महज़ प्रदर्शन बनकर रह जाएगा—जन स्वास्थ्य संकट के वास्तविक निदान की जगह सिर्फ आंकड़ों की बताज़ी बन जाएगा।