
( वशीन्द्र मिश्रा) उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने लोकसभा चुनाव में हुए शर्मनाक हार के लिए मुस्लिम समाज पर नाराजगी जाहिर की है। मायावती ने कहा है कि देश का मुस्लिम समाज उनकी पार्टी के साथ अपेक्षित सहयोग नहीं किया नतीजतन बीएसपी को इस चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है मायावती को शायद नहीं मालूम कि देश का मुस्लिम समाज अब बाक़ी समाजों की तरह राजनीतिक तौर पर बेहद जागरूक हो चुका है।मुस्लिम समाज अब महज़ एक वोट बैंक नहीं है। मुस्लिम समाज को महज बहुसंख्यक समाज का डर दिखाकर, आरएसएस और बीजेपी का डर दिखाकर अपने पाले में नहीं किया जा सकता देश का मुस्लिम समाज अलग-अलग राज्यों में प्रैक्टिकल वोटिंग करता रहा है और इस बार के चुनाव में खास तौर से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समाज की टैक्टिकल वोटिंग के चलते जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी को खासा नुकसान उठाना पड़ा है वहीं दूसरी तरफ बीएसपी को भी काफी नुकसान हुआ है
उत्तर प्रदेश में इस बार दलित मुस्लिम अति पिछड़े और अगाड़ी समाज के लोगों ने भी अपने राजनीतिक भविष्य, अपने आर्थिक भविष्य के मद्दे नजर टैक्टिकल वोटिंग की है इस इस चुनाव में बीएसपी का सर्वाधिक नुकसान हुआ है। इस नुकसान के पीछे मायावती के कार्य शैली, मायावती द्वारा अपने आर्थिक साम्राज्य को बचाए रखने के लिए समय-समय पर किए गए घोषित और अघोसित समझौते और दलित समाज के हितों की अनदेखी करते हुए कुछ खास दलों के साथ उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बाहर अलग-अलग राज्यों में समझौता करना बताया जा रहा।
बताया जा रहा है कि मायावती इसके पहले भी गुजरात पंजाब छत्तीसगढ़ मध्य प्रदेश राजस्थान और बिहार जैसे राज्यों में अपने आर्थिक साम्राज्य को बचाए रखने के मकसद से एक दल विशेष के कहने पर कांग्रेस आरजेडी के खिलाफ प्रत्याशी उतारती रही जिसका राजनीतिक फायदा उन राज्यों में गैर कांग्रेसी गैर आरजेडी दलों को होता रहा है। इस बार के लोकसभा के चुनाव में भी मायावती की तरफ से इस रणनीति पर काम किया गया था ।यहां तक की एक दल विशेष के दबाव में अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी और अपने परिवार के ही एक नेता को पार्टी के सभी पदों से हटा दिया था।
मायावती की यह कार्यशाली न केवल मुस्लिम समाज में बल्कि उनके समाज में भी अंदेशा और आशंका पैदा कर गई ।दलित समाज और मुस्लिम समाज को लगा कि मायावती एक बार फिर अपने आर्थिक साम्राज्य को बचाने के लिए ऐसे दल से परोक्ष रूप से समझौता कर बैठी है जो सत्ता में आने के बाद बाबा साहब अंबेडकर के द्वारा बनाए गए संविधान और दिए गए आरक्षण के अधिकार को समाप्त कर देगा और यही डर दलित समाज और मुस्लिम समाज को मायावती की पार्टी से दूर भागने के लिए विवश कर दिया इसलिए मुस्लिम समाज के प्रति मायावती की नाराजगी मुनासिब नहीं है मायावती को मुस्लिम समाज सहित अन्य समाजों को कोसने के बजाय अपनी नीतियों अपने कार्यशाली की समीक्षा करनी चाहिए और आर्थिक साम्राज्य को बचाने के बजाय बहुजन समाज के लिए अपने प्रतिबद्धता दिखानी चाहिए।
मायावती का आर्थिक साम्राज्य इस बहुजन समाज की राजनीतिक ताकत का प्रतिफल है जब बहुजन समाज जुड़ा तभी आर्थिक ताकत भी बड़ी और देश के लोगों ने अलग-अलग तरीके से मायावती को आर्थिक मदद पहुंचाई इसलिए यहां पर मैं समाजवादी पार्टी के संस्थापक और और देश के शीर्ष नेता रहे मुलायम सिंह यादव जी का एक कथन उधृत कर रहा हूं मुलायम सिंह जी सत्ता से बाहर हो गए थे!सत्ता से बाहर होने के साथ ही उनके तमाम व्यापारी मित्र उनको छोड़कर भाग गए थे मुलायम सिंह नए सिरे से सत्ता में वापसी के लिए अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे हुए थे इस दौरान उनका गंभीर आर्थिक संकट से भी गुजरना पड़ रहा था।
जब मैं उनसे पूछा की सत्ता में रहते हुए आपने तमाम लोगों की मदद की है अब उनके सहयोग की जरूरत है। वे लोग आपके आसपास क्यों नहीं दिखाई दे रहे है।
मुलायम सिंह जी मुस्कुराए और बहुत ही सरलता से मेरे सवालों का जवाब दिए उन्होंने कहा कि कारोबारी सत्ता के साथ जुड़ता है और सत्ता के जाने के साथ ही छोड़ कर चला जाता है
सार्वजनिक जीवन में काम करने वाले लोगों को किसी भी कारोबारी से लंबे समय तक बेहतर रिश्तों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए!सार्वजनिक जीवन में काम करने वालों की असली ताकत जनता होती है! जन समर्थन के दम पर राजनेता सत्ता तक पहुंच सकता है और जब राजनेता सत्ता तक पहुंच जाता है तो फिर वही कारोबारी लोग उसके आसपास दिखाई देने लगते हैं इसलिए राजनेता को कारोबारी लोगों की धन वैभव के पीछे भागना नहीं चाहिए उसकी असली पूंजी उसकी अपनी साख विश्वसनीयता और जनता की ताकत होती है।
इसी तरह की बात कांग्रेस से अलग हुए पंडित नारायण दत्त तिवारी जी ने भी कही थी!एक दौर था जब पीवी नरसिंह राव से नाराजगी के चलते अर्जुन सिंह जी और नारायण दत्त तिवारी ने मिलकर अलग कांग्रेस बनाई थी नई पार्टी चलाने के लिए संसाधनों की जरूरत होती है शुरुआती दौर में अर्जुन सिंह जी ने संसाधन मुहैया कराया लेकिन धीरे-धीरे संसाधनों में कमी महसूस की जाने लगी
नारायण दत्त जी प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के अलावा कांग्रेस के अच्छे दौर में सरकार में लगभग सभी महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके थे और महत्वपूर्ण पदों पर रहने के चलते नारायण दत्त तिवारी जी के आसपास कारोबारी लोगों का जमावड़ा लगा रहता था
नारायण दत्त जी को गलतफहमी थी कि उनके आसपास वाले कारोबारी उनके सच्चे दोस्त हैं, लेकिन उन सच्चे दोस्तों की जब जरूरत पड़ी तो वे नारायण दत्त तिवारी जी को छोड़कर भाग गए
नारायण दत्त तिवारी जी अपने जीवन के आखिरी दौर में जब सत्ता में नहीं थे और नई पार्टी का खर्चा जुटाना मुश्किल हो रहा था तो उनकी तरफ से उन सभी कारोबारी मित्रों को लगातार फोन किया जाता रहा लेकिन उन कारोबारी दोस्तों ने श्री तिवारी जी का फोन उठाना भी मुनासिब नहीं समझा!जब मैं तिवारी जी से इस बाबत जानने की कोशिश की तो उन्होंने भी ठीक उसी तरह का जवाब दिया जिस तरह का जवाब श्री मुलायम सिंह यादव जी ने दिया था
मायावती जी को राजनीति के इन दो धुरंधरों और सत्ता में लंबे समय तक रह चुके महान नेताओं के अनुभव से सबक लेते हुए अपनी पार्टी को नए सिरे से मजबूत करने की कोशिश करनी चाहिए मुस्लिम समाज को भला बुरा कहने से उनकी अपनी कमजोरी छुप नहीं सकती।