
घोटाले की हकीकत: अंसल एपीआई की अनियमितताओं का पर्दाफाश
रियल एस्टेट सेक्टर में धोखाधड़ी और ग्राहकों को गुमराह करने की घटनाएं कोई नई बात नहीं हैं, लेकिन लखनऊ के सुषांत गोल्फ सिटी में स्थित आस्था कामना अपार्टमेंट प्रोजेक्ट से जुड़ा मामला इस उद्योग के भीतर फैले गहरे भ्रष्टाचार और लचर निगरानी व्यवस्था को उजागर करता है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 2010 में हुई थी, जब अंसल एपीआई ने इसे एक निर्बल वर्ग के लोगों के लिए हाउसिंग प्रोजेक्ट के रूप में पेश किया और सैकड़ों ग्राहकों को आकर्षक ऑफर देकर फ्लैट बुक करने के लिए प्रेरित किया।
14 साल बाद भी, यह प्रोजेक्ट सिर्फ कागजों तक ही सीमित है। खरीदारों ने अपने जीवन की कमाई इस प्रोजेक्ट में निवेश कर दी, लेकिन उन्हें आज तक न तो अपना घर मिला और न ही उनकी रकम वापस की गई। इस बीच, अंसल ग्रुप ने इस प्रोजेक्ट की जमीन एक अन्य कंपनी, श्रीयश कंट्री होम्स प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी, जिससे खरीदारों का भविष्य अधर में लटक गया।
खरीदारों ने जब इस प्रोजेक्ट की प्रगति को लेकर अंसल के अधिकारियों से संपर्क किया, तो उन्हें हर बार झूठे आश्वासन और गोलमोल जवाबों से बहलाने की कोशिश की गई। खरीदारों के अनुसार, अंसल के कर्मचारी पहले कहते थे कि निर्माण कार्य जल्द शुरू होगा, लेकिन जब इसका खुलासा हुआ कि जमीन ही बेच दी गई है, तो वे जवाब देने से बचने लगे।
यह मामला न केवल खरीदारों के साथ धोखाधड़ी का है, बल्कि इसमें कानूनी अनियमितताएं भी स्पष्ट रूप से नजर आ रही हैं। अगर यह प्रोजेक्ट रेरा (RERA) से पंजीकृत था, तो फिर बिना किसी अधिसूचना के जमीन की बिक्री कैसे की गई? क्या इसमें सरकारी एजेंसियों की मिलीभगत थी?
खरीदारों की दुर्दशा: सपने चकनाचूर, न्याय की तलाश में संघर्ष
अंसल एपीआई के इस घोटाले का सबसे बड़ा असर उन 600 से अधिक खरीदारों पर पड़ा है, जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई इस प्रोजेक्ट में लगा दी। इनमें से कई लोग रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी, नौकरीपेशा लोग, और छोटे व्यापारी हैं, जिन्होंने अपनी बचत और बैंक लोन के जरिए ये फ्लैट बुक किए थे। लेकिन 14 साल बाद भी वे अपने घर का सपना पूरा होते नहीं देख पा रहे।
कुछ खरीदारों ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा कि उन्होंने फ्लैट खरीदने के लिए अपनी जीवनभर की जमा पूंजी लगा दी और अब वे न तो अपनी रकम वापस पा रहे हैं, न ही उन्हें घर मिल रहा है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ खरीदारों ने तो 100% भुगतान भी कर दिया था। इसका मतलब यह हुआ कि अंसल ग्रुप ने करोड़ों रुपये ग्राहकों से वसूल लिए और फिर उन्हें ठगा।
- एक ग्राहक, राकेश वर्मा, जो लखनऊ में एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं, ने 2011 में 35 लाख रुपये का भुगतान किया था। उन्होंने कहा,
“मैंने सोचा था कि यह एक प्रतिष्ठित बिल्डर है, इसलिए मैंने बिना शक किए पैसा लगा दिया। लेकिन आज तक मेरे फ्लैट की नींव तक नहीं रखी गई। मैं जब भी अंसल के दफ्तर जाता हूँ, तो वे मुझे सिर्फ अगली तारीख का आश्वासन देकर भेज देते हैं। अब मैं अपने पैसे डूबते हुए देख रहा हूँ।” - इसी तरह, रीता मिश्रा, जो एक विधवा हैं और अपने बेटे के साथ रहती हैं, ने कहा कि उन्होंने 2013 में फ्लैट के लिए बैंक से लोन लिया था।
“मैंने सोचा था कि मैं अपने बेटे को एक स्थायी घर दे पाऊँगी, लेकिन अब मुझे हर महीने ईएमआई चुकानी पड़ रही है और मुझे समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ।”
अब, खरीदारों ने न्याय के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है। उन्होंने लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) और रेरा के खिलाफ भी शिकायत दर्ज कराने की योजना बनाई है, क्योंकि इन संस्थानों की निष्क्रियता के कारण ही यह घोटाला इतना बड़ा हो सका।
प्रशासन और कानून की भूमिका: क्या होगी कार्रवाई?
यह घोटाला सिर्फ अंसल ग्रुप तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सरकारी एजेंसियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है।
- रेरा (RERA) का मुख्य उद्देश्य ग्राहकों के हितों की रक्षा करना है, लेकिन यह संस्था खरीदारों को न्याय दिलाने में विफल रही।
- लखनऊ विकास प्राधिकरण (LDA) ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दी थी, लेकिन जब जमीन बेच दी गई, तो उन्होंने कोई संज्ञान नहीं लिया।
- उत्तर प्रदेश सरकार भी अब तक इस मामले में कोई ठोस कार्रवाई करने में असफल रही है।
क्या अब होगी सख्त कार्रवाई?
खरीदारों ने अब प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से इस घोटाले की जांच कराने की मांग की है। अगर सरकार इस मामले को गंभीरता से लेती है, तो हो सकता है कि अंसल ग्रुप के खिलाफ कानूनी कार्रवाई तेज हो।
इसके अलावा, रेरा को भी जवाब देना होगा कि उसने क्यों इस प्रोजेक्ट की निगरानी नहीं की?
क्या यह मामला नए बिल्डर कानून का आधार बनेगा?
यह घोटाला एक बार फिर रियल एस्टेट सेक्टर में मजबूत कानून की जरूरत को दर्शाता है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि अगर रेरा को और अधिक शक्तियां दी जातीं, तो यह घोटाला शायद टल सकता था।
क्या खरीदारों को मिलेगा न्याय?
इस पूरे मामले से लखनऊ के 600 से अधिक परिवारों के सपने बर्बाद हो चुके हैं। उन्हें न्याय कब मिलेगा, यह एक बड़ा सवाल बना हुआ है।
लेकिन अगर सरकार और प्रशासन ने सही कदम उठाए, तो शायद यह घोटाला अन्य बिल्डरों के लिए एक सबक बन सकता है।
अब देखना यह होगा कि क्या अंसल ग्रुप पर कोई ठोस कार्रवाई होती है, या फिर यह मामला भी अन्य रियल एस्टेट घोटालों की तरह फाइलों में दबकर रह जाएगा।
(यह खबर आगे भी अपडेट की जाएगी, जैसे-जैसे नए तथ्य सामने आएंगे।)