नई दिल्ली 7 नवंबर डोनाल्ड ट्रम्प और नरेंद्र मोदी की संभावित साझेदारी के तहत भारत-अमेरिका संबंधों को आर्थिक सहयोग, रक्षा रणनीति और इंडो-पैसिफिक स्थिरता में मजबूत बनाने के नए अवसर मिल सकते हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि दोनों नेताओं के बीच पहले से स्थापित व्यक्तिगत तालमेल, “हाउडी, मोदी!” और “नमस्ते ट्रम्प” जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से उनके संबंधों को और प्रगाढ़ कर सकता है, जो अब उभरती वैश्विक चुनौतियों के साथ साझा रणनीतिक हितों को गति देने में सहायक हो सकता है।
आर्थिक विकास और व्यापार में विस्तार
भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंधों में लगातार मजबूती देखी गई है, और ट्रम्प की वापसी से इन संबंधों में नई ऊंचाइयों तक पहुँचने की उम्मीद है। मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के तहत अमेरिका के साथ तकनीकी और औद्योगिक निवेश को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा सकता है।

संभावनाएं:
ट्रम्प का “पारस्परिक कर” नीति पर जोर, जिसमें संतुलित कर प्रणाली की मांग होती है, भले ही तनाव का कारण बन सकती है, परंतु इससे भारत-अमेरिका व्यापार में आपसी बातचीत और रियायतें संभव हैं।
टेक्नोलॉजी और मेडिसिन के क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है, जिससे भारत की औद्योगिक और स्वास्थ्य सुविधाओं को मजबूती मिल सकती है।
सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ साझेदारी
भारत और अमेरिका दोनों ही आतंकवाद के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाते हैं, और ट्रम्प तथा मोदी के नेतृत्व में सुरक्षा संबंधी सहयोग और गहरा हो सकता है। आतंकवाद निरोधी अभियानों के लिए खुफिया जानकारी साझा करना और भारत की सीमा सुरक्षा में सहायता पर ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। इससे भारत की आंतरिक सुरक्षा मजबूत होगी और दोनों देशों के बीच रक्षा साझेदारी को नई मजबूती मिल सकती है।

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में सहयोग और क्वाड का महत्व
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता बनाए रखने में अमेरिका और भारत की साझा रणनीति महत्वपूर्ण है, विशेषकर चीन के बढ़ते प्रभाव के मुकाबले के लिए। ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में शुरू किया गया क्वाड गठबंधन, जिसमें भारत, अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं, इस क्षेत्र की सुरक्षा को प्रोत्साहित कर सकता है। यह गठबंधन क्षेत्रीय स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण होगा और चीन की मुखर नीतियों का सामना करने में सहायक रहेगा।
व्यापार नीतियों की चुनौतियां और अवसर
ट्रम्प की नीतियों में व्यापार असंतुलन को खत्म करने पर जोर दिया गया है, और ऐसे में “पारस्परिक कर” का मुद्दा दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा सकता है। हालांकि, भारत के लिए यह मौका है कि वह अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को संतुलित और अनुकूल शर्तों पर विकसित कर सके।
चुनौतियां:
चिकित्सा उपकरणों, दवाओं और कृषि क्षेत्रों में अधिक लाभकारी समझौतों पर वार्ता करनी होगी।
दोनों देशों के हितों के बीच सामंजस्य बनाने में कूटनीतिक कदम उठाने होंगे।
वैश्विक शासन और बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग
मोदी का बहुपक्षीय दृष्टिकोण जहां वैश्विक संबंधों को मजबूत करने पर जोर देता है, वहीं ट्रम्प का “अमेरिका फर्स्ट” सिद्धांत दोनों देशों के बीच मतभेद का कारण बन सकता है। इसके लिए दोनों नेताओं को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर सावधानीपूर्वक कूटनीति अपनानी होगी।
अवसर:
भारत को संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों पर अपनी प्रभावी भूमिका के लिए अमेरिका का समर्थन प्राप्त हो सकता है।
वैश्विक नीति में दोनों देशों के बीच सामंजस्य बनाने का प्रयास होना चाहिए।
रक्षा उपकरण और प्रौद्योगिकी में सहयोग
भारत को अत्याधुनिक अमेरिकी रक्षा उपकरणों और तकनीकी सहायता के माध्यम से अपनी सामरिक स्थिति मजबूत करने का अवसर प्राप्त हो सकता है। इससे भारत को अधिक सुरक्षा मिलेगी और रक्षा उद्योग में विदेशी निवेश बढ़ेगा। ट्रम्प की वापसी से अमेरिकी कंपनियों के लिए भारतीय बाजार में निवेश के रास्ते खुल सकते हैं, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को लाभ होगा।
रूस के साथ संबंधों में संतुलन
भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रक्षा और ऊर्जा संबंध रहे हैं, जो ट्रम्प की रूस विरोधी नीति के चलते चुनौती में आ सकते हैं। ऐसे में भारत को अपनी स्वतंत्र विदेश नीति के तहत अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाए रखना होगा ताकि दोनों देशों के साथ उसके रणनीतिक हितों की सुरक्षा हो सके।
ट्रम्प और मोदी की साझेदारी का प्रभाव भारत-अमेरिका संबंधों पर सकारात्मक हो सकता है। आर्थिक विकास, सुरक्षा सहयोग और क्षेत्रीय स्थिरता में मजबूत संबंधों का निर्माण किया जा सकता है। दोनों नेताओं की रणनीतिक समझ और कूटनीति से यह संबंध न केवल भारत और अमेरिका को लाभान्वित करेगा, बल्कि वैश्विक स्थिरता में भी योगदान दे सकता है।
