
(वसिंद्र मिश्र) क्या उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर कल्याण सिंह का दौर वापस आ गया है? क्या उत्तर प्रदेश में एक बार फिर जिस तरीके से कल्याण सिंह के खिलाफ पार्टी के अंदर एक विद्रोह की स्थिति पैदा की गई और उसके बाद उनको बहुत ही संयोजित तरीके से मुख्यमंत्री पद से हटाया गया था उसी तरह का माहौल बनता जा रहा है? मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ क्या एक बार फिर उत्तर प्रदेश की सरकार और भारतीय जनता पार्टी और उसका संगठन उसके नेता उसके विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ होते जा रहे हैं?
यह तमाम ऐसे सवाल है जो पिछले 4 जून के लोकसभा के चुनाव परिणाम आने के बाद से लेकर लगातार सार्वजनिक तौर पर पूछे जा रहे हैं और बताए जा रहे हैं कुछ लोगों का लगातार यह मानना रहा है कि अब उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन महज एक औपचारिकता बची है और किसी भी दिन उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है और मुख्यमंत्री के रूप में किसी दूसरे व्यक्ति की ताजपोशी हो सकती है लेकिन क्या आज के हालात में मौजूदा मुख्यमंत्री को बदलने से भारतीय जनता पार्टी को फायदा होने वाला है आने वाले 2027 के चुनाव में या जिस तरीके से कल्याण सिंह को बदलने में कुछ चुनिंदा नेताओं का अहम जरूर शांत हो गया वह खुश हो गए लेकिन लेकिन लंबे समय के बाद बीजेपी का बहुत ही ज्यादा नुकसान हुआ था क्या ठीक उसी तरीके से मौजूदा नेतृत्व के बदलने से भारतीय जनता पार्टी को दीर्घकालीन उसका नुकसान उठाना पड़ेगा राजनीतिक तौर पर यह तमाम ऐसे सवाल हैं जिसका उत्तर खोजना जरूरी है।
हम शुरुआत करते हैं कि उत्तर प्रदेश में क्या एक बार फिर कल्याण सिंह का दौर वापस आ गया है क्या जिस तरह से कल्याण सिंह के दौर में केंद्र की सरकार और केंद्र का पार्टी नेतृत्व और उत्तर प्रदेश की सरकार और उत्तर प्रदेश का पार्टी नेतृत्व एक दूसरे के खिलाफ काम कर रहा था क्या जिस तरीके से कल्याण सिंह के वक्त में उत्तर प्रदेश भाजपा के उत्तर प्रदेश सरकार में शामिल तमाम महत्वाकांक्षी नेताओं ने कल्याण सिंह के खिलाफ काम किया था और उनको हटाने में अपनी भूमिका निभाई थी क्या ठीक उसी तरीके की स्थिति इस समय उत्तर प्रदेश में बनती दिखाई नहीं दे रही है जिस तरीके के रिएक्शन संगठन से लेकर पार्टी कि नेताओं की तरफ से पहले देवरिया फिर गोरखपुर फिर प्रतापगढ़ फिर जौनपुर इन तमाम जनपदों से जिस तरीके के रिएक्शन पार्टी के नेताओं के द्वारा एक के बाद एक देखने और पढ़ने को मिल रहा है जिस तरीके से नेताओं की तरफ से लगातार यह आरोप लगाया जा रहा है की नौकरशाही बेलगाम हो गई है नौकरशाही पार्टी के कार्यकर्ताओं का अनादर कर रही है नौकरशाह पार्टी के नेताओं का अनादर कर रही है पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का सम्मान नहीं कर रही है नौकरशाही में व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ गया है तमाम ऐसे सवाल हैं जो इनडायरेक्ट मौजूद मुख्यमंत्री की कार्य शैली पर सवाल खड़े करते हैं यह सवाल कोई और नहीं उठा रहा है बल्कि बीजेपी के जिम्मेदार नेता उठा रहे हैं चाहे डिप्टी मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य हों या उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोती सिंह हो या उत्तर प्रदेश भाजपा के विधायक रमेश मिश्रा हों या इस तरीके के तमाम और नेता हैं जो संगठन के अंदर और संगठन के बाहर चाहे बीजेपी के गोरखपुर के एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह इन सभी लोगों की तरफ से उत्तर प्रदेश की सरकार और नौकरशाही को कटघरे में खड़ा किया जा रहा है।
मैं एक-एक करके आप लोगों के सामने उन हालातो का विश्लेषण करने जा रहा हूं किस तरीके से धीरे-धीरे योगी सरकार और योगी आदित्यनाथ के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश हो रही है मैं एक बार फिर आप लोगों को इतिहास की तरफ ले जाने की कोशिश करता हूं कल्याण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे कल्याण सिंह के मुख्यमंत्री काल के दौरान उनके कैबिनेट मंत्री में शामिल कलराज मिश्रा लाल जी टंडन सरीखे नेता उनके खिलाफ दबी जुबान से काम करते थे उस समय पार्टी संगठन भी कल्याण सिंह के खिलाफ था इन लोगों की कोशिश थी कि कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटवा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाई जाए इसलिए हर रोज कल्याण सिंह की सरकार पर नौकरशाही के बेलगाम होने का नौकरशाही का भ्रष्टाचार में लिप्त होने का गंभीर आरोप लगने लगे और आरोप लगाने में बाकी मीडिया तो पीछे रही जो आरएसएस से जुड़े हुए मुखपत्र थे पब्लिकेशन थे ऑर्गेनाइजर थे उन लोगों ने बहुत बढ चढ़कर हिस्सा लिया यहां तक कि उस समय के प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री नृपेंद्र मिश्रा उस समय के डीजी पुलिस प्रकाश सिंह के बीच में शीत युद्ध चल रहा था बताया जा रहा था कि प्रकाश सिंह और नृपेंद्र मिश्रा एक दूसरे को सीधे तौर पर देखना नहीं चाहते हैं एक दूसरे से बेहतर समन्वय और तालमेल नहीं है नृपेंद्र मिश्रा के खिलाफ उस समय आरएसएस के मुखपत्रों में रोज खबरें छपती थी और कहा जाता था कि नृपेंद्र मिश्रा मुख्यमंत्री को अपने हिसाब से समझाते हैं और मुख्यमंत्री उन्हीं की सलाह से काम करते हैं नतीजन पार्टी के कार्यकर्ताओं की अनदेखी हो रही है इसी बीच लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा को लेकर एक रिपोर्ट तैयार हुई थी कि उत्तर प्रदेश के गृह विभाग की तरफ से उत्तर प्रदेश के अभिसूचना विभाग की तरफ से और उसे रिपोर्ट को डीजी पुलिस प्रकाश सिंह की तरफ से मुख्यमंत्री को कॉन्फिडेंसिली भेजा गया था उस रिपोर्ट में तमाम ऐसे बिंदुओं की ओर इशारा किया गया था जिसको लेकर बाद में तूफान खड़ा हो गया उस रिपोर्ट में कथित तौर पर कहा गया था कि अगर आडवाणी जी की यात्रा उत्तर प्रदेश उत्तर प्रदेश की सीमा में आएगी तो उत्तर प्रदेश के कुछ जनपदों में सांप्रदायिक तनाव बढ़ने की संभावना है यह रिपोर्ट पूरी तरीके से गोपनीय और अति गोपनीय थी उसे रिपोर्ट को डीजीपी कार्यालय और डीजी इंटेलिजेंस की तरफ से मुख्यमंत्री को भेजा गया था लेकिन वह रिपोर्ट किन्हीं कारणों से कुछ चुनिंदा अखबारों में छपवा दी गई रिपोर्ट के छपने के बाद बवाल मच गया पार्टी का शीर्श नेतृत्व और संघ परिवार इस बात को लेकर काफी नाराजगी जताई और कहा गया कि यह रिपोर्ट अपने ही सरकार में कैसे बनाई गई और कैसे लीक हुई परिणाम यह हुआ उसकी जांच के लिए तत्कालीन डीजी पुलिस प्रकाश सिंह ने ऑफिसियल सीक्रेट एक्ट के तहत लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक मुकदमा कायम करा दिया अज्ञात लोगों के खिलाफ अब उस मुकदमा के कायम होने के बाद जो शीत युद्ध तत्कालीन प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्रा और डीजी पुलिस प्रकाश कुमार के बीच चल रहा था वह और तेज हो गया और इन दो शीर्ष अधिकारियों के आपसी खींचतान को कम करने के लिए मुख्यमंत्री ने डीजी पुलिस और उनकी टीम को बदल दिया प्रकाश सिंह को डीजी होमगार्ड बनाकर भेज दिया गया प्रकाश सिंह ने विरोध के तौर पर डीजी होमगार्ड का पद नहीं संभाला और वह छुट्टी चले गए प्रकाश सिंह उस समय के संघ प्रमुख राजू भैया के करीबी माने जाते थे और राजू भैया का उनको संरक्षण हासिल था प्रकाश सिंह के लिए रज्जू भैया ने सिफारिश किया और कुछ दिनों के बाद प्रकाश सिंह को फिर से डीजे पुलिस बना दिया गया और प्रकाश सिंह ने उस समय के अपने चाहते एसपी शैलजा कांत मिश्रा को फिर से एसएसपी लखनऊ बनवाया वही शैलजा कांत मिश्रा जो इस समय मथुरा तीर्थ विकास क्षेत्र के बड़े पद पर कार्यरत हैं योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के दिन से और फिर नृपेंद्र मिश्रा को प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री के पद से हटाकर बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में इलाहाबाद भेज दिया गया बहुत ही महत्वहीन पद पर नृपेंद्र मिश्रा कुछ दिन उस पद पर रहे बाद में वह अपने तरीके से चीजों को मैनेज किया और फिर कुछ दिन में वापसी हो गई उसके बाद यह विवाद धीरे-धीरे बढ़ता रहा और अंत में कल्याण सिंह को हटाने का फैसला हो गया और कल्याण सिंह को तैयार करके राम प्रकाश गुप्ता को उनका सक्सेसर अपॉइंट कर दिया गया लेकिन जो महत्वाकांक्षी नेता उस समय सरकार में थे चाहे वह कलराज मिश्रा हों लाल जी टंडन हो यह सभी लोग चैन से नहीं बैठे लगातार राम प्रकाश गुप्ता के खिलाफ भी मुहिम चलाते रहे और अंत में फिर एक बार उत्तर प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ राम प्रकाश गुप्ता की जगह राजनाथ सिंह को मुख्यमंत्री बना दिया गया यह अलग बात है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव हुआ तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी की शर्मनाक हार हुई और लगभग एक दशक तक उत्तर प्रदेश की सत्ता से बाहर रही आज कमोबेश वही स्थिति है योगी आदित्यनाथ के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार के कुछ मंत्री से लेकर कुछ विधायक सक्रिय है उनको केंद्रीय नेतृत्व से संरक्षण हासिल है वह केंद्रीय नेतृत्व के संरक्षण में रोज योगी आदित्यनाथ के खिलाफ कुछ ना कुछ कस्तानी कारनामें करते रहते हैं इसकी शुरुआत 4 जून के बाद ज्यादा तेजी से देखने को मिल रही है जब उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ता अभिनंदन सम्मेलन के जरिये जिलों जिलों में उत्तर प्रदेश सरकार के खिलाफ और नौकरशाही के खिलाफ आरोप लगाए जा रहे हैं हद तो तब हो गई जब जब उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता प्रतापगढ़ से मोती सिंह ने कार्यकर्ता अभिनंदन सम्मेलन में इस बात पर गंभीर आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश के नौकरशाही में भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया है नौकरशाही बेलगाम है उन्होंने यह भी दावा किया तो उनके 40 साल के राजनीतिक जीवन में इस लेवल का भ्रष्टाचार इसके पहले उन्होंने कभी नहीं देखा था कमोवेश इसी तरह का आरोप जौनपुर से बीजेपी के एमएलए रमेश मिश्रा ने लगाया और उसके बाद जब अभी कार्य समिति की बैठक हुई थी तो उसमें डिप्टी चीफ मिनिस्टर केशव प्रसाद मौर्य ने भी कार्यकर्ताओं की उपेक्षा का आरोप लगाया और उन्होंने कहा संगठन सरकार से बड़ा है संगठन सरकार से ज्यादा महत्वपूर्ण है और सरकार की तुलना में संगठन और कार्यकर्ताओं को ज्यादा तरजीह मिलना चाहिए ज्यादा महत्व मिलना चाहिए।
मैं अब आपको एक बार फिर से इतिहास में ले जाना चाहता हूं जब कल्याण सिंह के खिलाफ मुहिम शुरू हुई थी धीरे-धीरे उसे समय भी ब्राह्मण बिरादरी के 55 विधायकों ने कल्याण सिंह के खिलाफ दुर्गा प्रसाद मिश्रा जो उस समय देवरिया के बीजेपी के विधायक थे उनकी रहनुमाई में एक प्रेशर ग्रुप बनाया और कल्याण सिंह की सरकार पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगाया था और उस समय भी दुर्गा प्रसाद मिश्र और उन विधायकों के खिलाफ अनुशासनहीनता की कार्रवाई करने के बजाय केंद्रीय नेतृत्व ने बीच बचाव का रास्ता अपनाया दोनों तरफ शांत करा कर एक तरफ कल्याण सिंह को और दूसरी तरफ दुर्गा प्रसाद मिश्रा और उनके लगभग 50-55 विधायकों को शांत कराया ठीक उसी तरीके से सिनेरियो एक बार फिर बनता दिखाई दे रहा है इस बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में पार्टी के कार्य समिति में कार्यकर्ता के उपेक्षाओं के गंभीर आरोप लगाए गए और जगह-जगह जो कार्यकर्ता अभिनंदन सम्मेलन हो रहे हैं उसमें भी बेलगाम नौकरशाही, नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार उसको लेकर गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं पढ़ने को मिल रहे हैं देखने को मिले हैं तो क्या माना जाए एक बार फिर उत्तर प्रदेश की राजनीति में कल्याण सिंह का दौर वापस आ गया है क्या यह माना जाए एक बार फिर जिस तरीके से कल्याण सिंह के खिलाफ राजनीतिक साजिश करके उनको मजबूर किया गया कुर्सी से इस्तीफा देने के लिए पद से इस्तीफा देने के लिए और अपने पसंदीदा किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनने के लिए ठीक उसी तरीके से स्थिति इस तरीके की हालत योगी आदित्यनाथ के साथ पैदा करने की कोशिश हो रही है और अगर ऐसा होता है तो क्या बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व नें कल्याण सिंह के वक्त में हुई उसे राजनीतिक चूक से सबक नहीं लिया क्या वहीं घटना फिर से रिपीट होती है और उसी तरीके के फैसले फिर दोहराए जाते हैं तो यह तय नहीं है कि 2027 के चुनाव में योगी आदित्यनाथ के हटाये जाने का खामियाजा पार्टी और नेताओं को भुगतना पड़ सकता है महज नेताओं के आपसी अहंकार आपसी खींचतान का नतीजा क्या लॉन्ग टर्म में बीजेपी, बीजेपी का शीर्श नेतृत्व बीजेपी के और उससे जुड़े हुए महत्वपूर्ण नेता उठाने के लिए और भुगतने के लिए तैयार हैं यह तो पार्टी को तय करना है पार्टी के नेतृत्व को तय करना है।