
सिंधु घाटी रिपोर्ट 2025 के निष्कर्षों पर गहराई से विश्लेषण
नई दिल्ली, 2 मार्च। भारतीय अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति और उपभोक्ता प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालने वाली सिंधु घाटी वार्षिक रिपोर्ट 2025 ने कुछ चिंताजनक निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। इस रिपोर्ट को वेंचर कैपिटल फर्म ब्लूम वेंचर्स ने जारी किया है, जो भारतीय स्टार्टअप इकोसिस्टम और व्यापक आर्थिक परिदृश्य का विश्लेषण करती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में आर्थिक असमानता तेजी से बढ़ रही है, और उपभोक्ता वर्ग का विस्तार ठहराव की स्थिति में पहुंच चुका है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और महासचिव (संचार) श्री जयराम रमेश ने 27 फरवरी को जारी अपने बयान में रिपोर्ट के सबसे गंभीर पहलुओं को उजागर किया था। उन्होंने बताया कि भारत में आम जनता की क्रय शक्ति सीमित होती जा रही है और विकास का लाभ केवल धनी वर्ग तक सीमित रह गया है। इस असमानता को दूर करने के लिए ग्रामीण आय बढ़ाने और सामाजिक-आर्थिक सशक्तिकरण की आवश्यकता पर बल दिया गया।
भारत में उपभोग व्यय और असमानता के आंकड़े
रिपोर्ट के अनुसार, भारत का प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय मात्र 1,493 है, जो चीन की तुलना में एक-तिहाई से भी कम है। इसका सीधा अर्थ है कि भारतीय उपभोक्ता वैश्विक मानकों के मुकाबले बेहद कम खर्च करने में सक्षम हैं। इसके पीछे मुख्य कारण निम्न और मध्यम वर्ग की स्थिर या गिरती हुई आय और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें हैं।
1. भारत के उपभोक्ता वर्ग का संकुचित दायरा
रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत में वास्तविक उपभोक्ता वर्ग केवल 3 करोड़ परिवारों तक सीमित है, जो देश की कुल जनसंख्या का मात्र 10% हैं। यह वर्ग ही मुख्य रूप से बड़े पैमाने पर वस्तुएं और सेवाएं खरीदने में सक्षम है। इसके अलावा, 7 करोड़ परिवार ‘आकांक्षी वर्ग’ (aspirant class) में आते हैं, जिनकी क्रय शक्ति सीमित है और जो केवल आवश्यक वस्तुओं पर खर्च करने में सक्षम हैं।
लेकिन सबसे गंभीर पहलू यह है कि भारत की कुल 140 करोड़ की आबादी में से 100 करोड़ लोग यानी 20.5 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनकी आमदनी इतनी कम है कि वे कोई वैकल्पिक उपभोक्ता वस्तुएं नहीं खरीद सकते। यह वर्ग केवल रोजमर्रा की बुनियादी जरूरतों तक सीमित है और बाजार में आर्थिक गतिविधियों में सीमित योगदान दे रहा है।
2. भारत में जीवनशैली उत्पादों की सीमित खपत
भारत में प्रमुख जीवनशैली उत्पादों की मांग अत्यंत कम है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि लोगों के पास खर्च करने की क्षमता नहीं है। उदाहरण के लिए:
- भारत दुनिया में बेचे जाने वाले कुल एयर कंडीशनर यूनिट्स में मात्र 7% हिस्सेदारी रखता है, जबकि चीन की हिस्सेदारी 55% है।
- भारत में दोपहिया वाहनों, फुटवियर, FMCG उत्पादों आदि की खपत वैश्विक औसत से भी काफी कम है।
- हवाई यात्रा और ऑटोमोबाइल सेक्टर के आंकड़े बताते हैं कि भारत का मध्यम वर्ग अभी भी आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहा है और उच्च वर्ग ही बाजार को गति दे रहा है।
3. आर्थिक वृद्धि और असमानता का गहराता संकट
रिपोर्ट यह संकेत देती है कि भारत की आर्थिक वृद्धि मुख्य रूप से उच्च वर्ग की बढ़ती क्रय शक्ति से संचालित हो रही है। उदाहरण के लिए,
- SUV बिक्री का हिस्सा वित्त वर्ष 2019 में 23% से बढ़कर वित्त वर्ष 2024 में 50% हो गया।
- महंगे उत्पादों की बिक्री में वृद्धि हुई है, लेकिन बजट सेगमेंट में स्थिरता या गिरावट देखी गई है।
- निजी एयरलाइंस की अधिकांश सीटें उन यात्रियों द्वारा भरी जा रही हैं, जिनकी आय 1% शीर्ष वर्ग में आती है।
इसका अर्थ यह है कि भारत की विकास दर का लाभ केवल अमीर वर्ग तक सीमित है, जबकि गरीब और निम्न-मध्यम वर्ग की आय में कोई महत्वपूर्ण बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
भारत की नीतियों में श्रमिकों और निम्न वर्ग की उपेक्षा
रिपोर्ट यह दर्शाती है कि भारत की सरकार निम्न वर्ग को आर्थिक रूप से सशक्त भागीदार के रूप में देखने के बजाय केवल ‘योजनाओं के लाभार्थी’ के रूप में देख रही है। पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने बड़ी कंपनियों को भारी कर छूट और प्रोत्साहन दिए हैं, लेकिन ग्रामीण और निम्न आय वर्ग की आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं।
सरकार की योजनाएं जैसे मुफ्त राशन, प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना आदि गरीबों को लाभान्वित कर रही हैं, लेकिन इन योजनाओं का स्वरूप ऐसा है कि यह केवल जीविका चलाने तक सीमित रह जाता है। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने और उनकी क्रय शक्ति को बढ़ाने के लिए बड़े बदलाव की जरूरत है।
आर्थिक असमानता दूर करने के लिए क्या होना चाहिए?
रिपोर्ट का निष्कर्ष यह है कि यदि भारत को वास्तव में एक मजबूत उपभोक्ता बाजार बनाना है और समावेशी विकास की ओर बढ़ना है, तो नीति-निर्माण का केंद्र बिंदु भाई-भतीजावाद और कॉर्पोरेट केंद्रित नीतियों से हटाकर ‘नीचे से ऊपर तक सशक्तिकरण’ पर लाना होगा।
इस दिशा में निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
1. ग्रामीण आय में वृद्धि
- मनरेगा मजदूरी में मुद्रास्फीति से अधिक बढ़ोतरी की जानी चाहिए, ताकि ग्रामीण क्षेत्रों की क्रय शक्ति बढ़ सके।
- किसानों की आय में वृद्धि के लिए संपन्न कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
- लघु एवं मध्यम उद्योगों को वित्तीय सहायता देकर स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे।
2. मध्यम वर्ग को मजबूत करने की नीति
- व्यक्तिगत आयकर में छूट की सीमा बढ़ाई जानी चाहिए, जिससे मध्यम वर्ग के हाथ में अधिक धन बच सके।
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी निवेश बढ़ाकर लोगों के खर्चों को कम करना होगा।
3. न्यूनतम वेतन और श्रम सुधार
- सभी क्षेत्रों में न्यूनतम वेतन मुद्रास्फीति को ध्यान में रखते हुए पुनः निर्धारित किया जाना चाहिए।
- असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाया जाए।
4. सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र को बढ़ावा
- MSME सेक्टर को कम ब्याज दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाए, ताकि वे अधिक लोगों को रोजगार दे सकें।
- स्टार्टअप्स और छोटे व्यवसायों के लिए करों में छूट दी जाए।
सिंधु घाटी रिपोर्ट 2025 भारत के लिए एक चेतावनी है कि यदि देश को संतुलित और टिकाऊ विकास की राह पर आगे बढ़ाना है, तो केवल शीर्ष 10% उपभोक्ता वर्ग पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। सशक्तिकरण की नीति अपनाकर निम्न और मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति को बढ़ाना होगा, तभी भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक सशक्त खिलाड़ी बन सकेगा।
यदि सरकार ने अब भी नीति-निर्माण में बदलाव नहीं किया, तो आने वाले वर्षों में भारत की आर्थिक असमानता और बढ़ेगी, जिससे सामाजिक और आर्थिक स्थिरता पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।