
(वसिंद्र मिश्र) नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ का फैसला भारत के अलग-अलग राजनीतिक दलों के लिए एक कैच 22 की स्थिति पैदा कर दिया है भारतीय जनता पार्टी की सरकार की तरफ से संविधान पीठ के सामने एससी एसटी के अंदर उप वर्गीकरण का सुझाव दिया गया था संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में एससी-एसटी के अंदर कोटा विद इन कोटा या हम कहें कि क्रीमी लेयर का फार्मूला लागू करने का सुझाव दिया है संविधान पीठ ने साफ कर दिया है कि आजादी के इतने साल बाद भी एससी एसटी जातियों में अभी भी छुआछूत बरकरार है और एससी एसटी वर्ग के अंदर तमाम ऐसी जातियां हैं जो उसी वर्ग के दूसरी जातियों के साथ में छुआछूत में विश्वास रखती है भेदभाव करती है इसलिए जो जातियां अती दलित है अति कमजोरी है उनको वरीयता दी जानी चाहिए और उनका एक वर्गीकरण करके आरक्षण की सुविधा सबसे पहले उनको दी जानी चाहिए सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का तमिलनाडु, तेलंगाना राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने स्वागत किया है लेकिन बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने इस फैसले का विरोध किया है उनका कहना है कि एससी एसटी वर्ग में अभी भी सामाजिक आर्थिक पिछलापन ज्यादा है इसलिए कोटा विद इन कोटा व्यवस्था लागू नहीं किया जाना चाहिए उनका कहना है कि संविधान पीठ का फैसला व्यावहारिक नहीं है अब मायावती के अपने तर्क हो सकते हैं उनके अपने पॉलिटिकल कंपल्शन हो सकते हैं इसी तरह के पॉलिटिकल कंपल्शन बाकी राजनीतिक दलों का भी हो सकता है लेकिन भारतीय जनता पार्टी की सरकार की तरफ से और सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ की तरफ वर्गीकरण का फैसला आ गया है और सरकार ने भी कहा है की सुप्रीम कोर्ट के फैसले को माननें में उनको कोई एतराज नहीं है लेकिन अब देखना है की किस तरह से ये फैसला लागू होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राज्यों को अधिकार दिया है कि वह अपने-अपने राज्यों में सामाजिक स्थिति का आकलन करके कास्ट और सब कास्ट के एक रिपोर्ट तैयार करें और उस आधार पर अपने अपने राज्यों में एससी एसटी के अंदर कोटा विद इन कोटा लागू करें हम सब जानते हैं कि बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने कई साल पहले महादलित और अति पिछड़ों को लेकर एक वर्गीकरण किया था और उस आधार पर बिहार में आरक्षण की व्यवस्था की थी कहा जाता है नीतीश कुमार का यही ट्रंप कार्ड था जिसके चलते हुए लगातार बिहार के राजनीतिक में रेलीवेंट बने हुए हैं और जब-जब चुनाव होता है तो उनको दलित समाज का अति पिछड़ा या अति गरीब कहिए या महा दलित कहिए नितेश कुमार को वोट देता है और पिछड़ों में भी जो अति पिछड़ा है वह नीतीश कुमार को वोट देता है भारत में कोटा विद इन कोटा लागू करने की शुरुआत 1975 में पंजाब की सरकार ने किया था और उसके देखा देखी आंध्र प्रदेश की सरकार ने भी लागू करने की कोशिश की थी लेकिन इन दोनों राज्य सरकारों के उसे निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई थी और सुप्रीम कोर्ट ने 2004 में पांच जज की पीठ ने पंजाब और आंध्र प्रदेश सरकार के उसे कोटा विद इन कोटा या वर्गीकरण करने संबंधी फैसले को खारिज कर दिया था और इस तरह से जो पुरानी व्यवस्था थी एससी एसटी पूरे समुदाय को आरक्षण देने की वह अभी तक चली आ रही थी उसके बाद प्रकरण संविधान पीठ के सामने गया और संविधान पीठ ने कई वर्षों तक सुनवाई करने के बाद 1 अगस्त को अपना फैसला सुनाया है सात जजों की संविधान पीठ में से 6 न्यायाधीशों ने कोटा विद इन कोटा या हम कहें क्रीमी लेयर जातियों के वर्गीकरण और उप वर्गीकरण का फैसला सुनाया है और साथ जज में से एक जज जस्टिस वेला त्रिवेदी ने मेजोरिटी फैसले के खिलाफ अपने राय जाहिर की भारत के मुख्य न्यायाधीश डिवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में गठित इस संविधान पीठ ने अपने फैसले में 1917 और 1932 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान एससी-एसटी को लेकर कराए गए सर्वे और उन सर्वे रिपोर्ट्स का हवाला दिया डिवाई चंद्रचूड़ ने अपने विस्तृत फैसले में लिखा है कि ब्रिटिश टाइम में भी जो रिपोर्ट पेश हुई थी उसमें एससी एसटी के अंदर छुआ छुआ और जातियों के अंदर भेदभाव की पुष्टि की गई तो 1917 और 1932 की दो रिपोर्ट और उसके बाद के जितने भी विभिन्न डाटा आज अवेलेबल है उसके आधार पर संविधान पीठ ने फैसला सुनाया है कि क्रीमी लेयर की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए जातियों के अंदर वर्गीकरण की व्यवस्था लागू होनी चाहिए और एससी-एसटी के अंदर जो सबसे ज्यादा कमजोर है जो पिछड़े हैं उनको आरक्षण की सुविधा मिलनी चाहिए संविधान पीठ के एक जज ने तो यह भी सुझाव दिया है कि एक बार जिस परिवार को आरक्षण की सुविधा मिल गई हो उसको दोबारा इसकी सुविधा नहीं मिलनी चाहिए अब इस तरह का फैसला आने के बाद जो आरक्षण विरोधी तत्व रहे हैं जो शुरू से आरक्षण का विरोध करते रहे हैं जातीय आधार पर उनको एक नया तर्क मिल गया है अपनी बात और मजबूती से रखने के लिए और जब ओबीसी के अंदर क्रीमी लेयर का फार्मूला लागू करने का जजमेंट आया था तब भी और अब एससी एसटी के अंदर जब क्रीमी लेयर और वर्गीकरण के फैसले को लागू करने का सुझाव आया है तब भी ऐसी ताकत है जो आरक्षण का विरोध करती है उनको एक नई एनर्जी मिली है एक नई ऊर्जा मिली है समाज के अंदर अपनी बात करने के लिए। लेकिन अगर संविधान पीठ के फैसले पर गंभीरता से स्टडी किया जाए उसे पर विचार किया जाए तो एक बात सबसे जो महत्वपूर्ण निकलकर आ रही है कि संविधान पीठ ने कहा है कि पता लगाइए जनगणना कराकर एससी एसटी के अंदर एक वर्गीकरण किया जाना चाहिए भारत सरकार पिछले कई वर्षों से जातीय जनगणना को टाल रही है पहले कोविड का सहारा लेकर जनगणना को टाल दिया गया था और अब जब गैर भाजपा सभी पार्टियां जाति आधार पर जनगणना की मांग कर रही है राहुल गांधी अखिलेश यादव तेजस्वी यादव सहित इंडिया एलायंस के ज्यादातर घटक दलों की तरफ से जातीय जनगणना को लेकर चुनाव में भी मुद्दा बनाया गया था और चुनाव परिणाम आने के बाद भी संसद के अंदर और बाहर मुद्दा बनाने की बात की जा रही है तो अब सरकार ऐसी स्थिति में क्या फैसला लेती है यह देखने की बात है क्योंकि भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में गठित संविधान पीठ का फैसला अगर सरकार लागू करना चाहेगी तो उसे स्थिति में उसको सभी कमजोर वर्गों को पता लगाने के लिए एक सर्वे करना पड़ेगा एक जनगणना करना पड़ेगा और वह जनगणना तभी हो सकता है जब जातीय जनगणना पूरे देश में कराई जाए जिसकी मांग इंडिया एलायंस के सभी दल कर रहे हैं तो अब देखना है कि पहली बात यह की संविधान पीठ के इस फैसले का देश के कौन-कौन से राजनीतिक दल खुले तौर पर सपोर्ट कर रहे हैं कौन-कौन से राजनीतिक दल इसमें अपनी अलग राय रखता है और दूसरा अगर सरकार जिस तरह से कोर्ट के अंदर उप वर्गीकरण का वकालत कर चुकी है अगर इस स्टैंड पर कायम रहती है तो फिर उसकी जातिय जनगणना के दिशा में पहल करनी पड़ेगी और अगर वह जाति जनगणना की दिशा में पहल करती है तो राहुल गांधी से लेकर अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव का जो पॉलीटिकल स्टैंड है कि वह जाति जनगणना को इसी संसद में पारित कराने की कोशिश करेंगे उनके इस दावे को बल मिलेगा और उसका पॉलीटिकल माइलेज इंडिया एलायंस की पार्टियां लेने की कोशिश करेंगी।