
नई दिल्ली, 17 अप्रैल। वक्फ अधिनियम में हालिया संशोधनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगाई गई अंतरिम रोक का कांग्रेस पार्टी ने खुले शब्दों में स्वागत किया है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ, राज्यसभा सांसद डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने इसे “संविधान की आत्मा की जीत” करार दिया। कांग्रेस कार्यालय में आयोजित विशेष प्रेस वार्ता में सिंघवी के साथ मौजूद पार्टी के राष्ट्रीय सचिव और राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने भी इसे “न्यायपालिका द्वारा अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा” बताया और उम्मीद जताई कि आने वाली सुनवाई में और राहत मिलेगी।
वैचारिक हमले की राजनीति और कानूनी प्रतिक्रिया
डॉ. सिंघवी ने कहा कि केंद्र सरकार जिस अधिनियम को प्रशासनिक सुधार का नाम दे रही है, वह वास्तव में एक वैचारिक हमला है। उन्होंने कहा, “वक्फ अधिनियम में किए गए संशोधन प्रशासनिक बदलाव नहीं, बल्कि संवैधानिक मूल्यों, धार्मिक स्वायत्तता और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के विरुद्ध हैं।” उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि यह केवल एक धार्मिक समुदाय का मुद्दा नहीं, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 में प्रदत्त मूल अधिकारों का मामला है, जो प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म के पालन, प्रचार, प्रबंधन और संबंधित संस्थानों के संचालन का अधिकार देता है।
सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश और उसका प्रभाव
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद अदालत ने वक्फ संशोधन अधिनियम की कुछ महत्वपूर्ण धाराओं, जैसे कि धारा 9 और 14, पर अंतरिम रोक लगा दी। धारा 9 में प्रावधान था कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 22 में से 12 सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं, जबकि धारा 14 में वक्फ बोर्ड के 11 में से 7 सदस्यों को गैर-मुस्लिम बनाए जाने की व्यवस्था थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन विवादित प्रावधानों पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है, जिसे कांग्रेस ने संविधान की आत्मा की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया है।
स्वायत्तता पर प्रहार, संविधान पर प्रश्न
डॉ. सिंघवी ने कहा कि वक्फ अधिनियम की धारा 11, जो चुनाव आधारित प्रतिनिधियों को हटाकर सभी सदस्यों की नियुक्ति सरकार द्वारा करने की बात करती है, सीधे-सीधे संस्थागत स्वायत्तता पर प्रहार है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि इस प्रकार का परिवर्तन धार्मिक संस्थानों को सरकारी नियंत्रण में लाने का प्रयास है, जो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के मूलभूत ढांचे के खिलाफ है।
लोकतंत्र और न्यायिक संतुलन पर सवाल
प्रेस वार्ता में डॉ. सिंघवी ने यह भी बताया कि संशोधित अधिनियम के अनुसार यदि वक्फ बोर्ड के सभी सदस्य मिलकर भी अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करें, तो भी अध्यक्ष को नहीं हटाया जा सकता जब तक कि सरकार स्वयं उस पर कार्रवाई न करे। “यह न केवल हास्यास्पद है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया का भी अपमान है,” उन्होंने कहा। उन्होंने यह भी बताया कि अब वक्फ बोर्ड का सीईओ गैर-मुस्लिम भी हो सकता है, जो संस्थागत पहचान और समुदाय की स्वायत्तता दोनों पर सवाल खड़ा करता है।
वक्फ संपत्ति को लेकर विवाद की खुली छूट
डॉ. सिंघवी ने एक अन्य विवादास्पद प्रावधान का उल्लेख करते हुए कहा कि अब किसी भी व्यक्ति द्वारा कलेक्टर को एक साधारण शिकायत पत्र देकर वक्फ संपत्ति को विवादित घोषित कराया जा सकता है, जिसमें न कोई कारण बताने की बाध्यता है, न ही निर्णय लेने की कोई समय-सीमा। “इससे न केवल संपत्ति विवाद बढ़ेंगे, बल्कि धार्मिक संस्थाओं की वैधानिक सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी,” उन्होंने जोड़ा।
संविधान विरोधी प्रावधानों के खिलाफ कांग्रेस की भूमिका
इमरान प्रतापगढ़ी ने स्पष्ट किया कि इस अधिनियम के संशोधनों के खिलाफ उन्होंने स्वयं और अन्य याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जब संसद में विपक्ष द्वारा दिए गए सुझावों को सरकार ने नकार दिया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश को ‘संविधान की जीत’ बताया और कहा कि “आज जब एक समुदाय की धार्मिक संस्थाओं पर नियंत्रण की कोशिश हो रही है, तो कल यह संकट किसी भी अल्पसंख्यक या बहुसंख्यक धर्म की संस्था पर आ सकता है।”
कांग्रेस का संविधान रक्षा संकल्प
उन्होंने दोहराया कि कांग्रेस ने न सिर्फ भारत का संविधान बनाया, बल्कि उसकी रक्षा की जिम्मेदारी भी हर युग में निभाई है। “हम यह लड़ाई न किसी धर्म के नाम पर लड़ रहे हैं, न किसी जाति के नाम पर, बल्कि इस मुल्क की उस रूह के लिए लड़ रहे हैं जो संविधान की प्रस्तावना में समाहित है—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व।”
वक्फ ‘बाय यूजर’ की कानूनी स्थिति भी संकट में
डॉ. सिंघवी ने यह भी रेखांकित किया कि नए अधिनियम के तहत वक्फ ‘बाय यूजर’ (यानि लंबे समय से धार्मिक उपयोग में आ रही संपत्ति) की कानूनी मान्यता समाप्त हो गई है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट कर दिया है कि फिलहाल जो संपत्तियाँ घोषित या पंजीकृत हैं, उनकी यथास्थिति बनी रहेगी।
आगे की रणनीति और न्याय की आशा
प्रतापगढ़ी और सिंघवी दोनों ने विश्वास जताया कि आने वाली सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट इस अधिनियम के और अधिक प्रावधानों को रद्द करेगा। उन्होंने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर संवैधानिक तरीके से संघर्ष करती रहेगी और हर धार्मिक समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
संविधान बनाम सत्ता
कांग्रेस द्वारा दी गई इस प्रतिक्रिया से स्पष्ट है कि वक्फ संशोधन अधिनियम पर अब केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि गंभीर संवैधानिक बहस शुरू हो चुकी है। यह मामला अब किसी विशेष समुदाय की भावनाओं से कहीं अधिक, उस लोकतांत्रिक ढांचे और सांविधानिक सिद्धांतों की रक्षा से जुड़ा हुआ है, जिन पर भारत की नींव टिकी है। सुप्रीम कोर्ट के आने वाले फैसले इस बहस की दिशा तय करेंगे और शायद यह भविष्य में अन्य धार्मिक संस्थानों की स्वायत्तता के लिए भी एक मिसाल बनेंगे।