
(वाशिंद्र मिश्रा) एनडीए सरकार का पहला शक्ति परीक्षण 26 जून को होने जा रहा है। शक्ति परीक्षण का कारण लोकसभा के स्पीकर का चुनाव है। परंपरा के मुताबिक लोकसभा का स्पीकर सत्तारुढ़ दल का होता है। भाजपा या एनडीए आज की तारीख में सत्तारुढ़ दल है। सत्तारुढ़ गठबंधन है इसलिए स्पीकर एनडीए की तरफ से होना चाहिए लेकिन पिछले कुछ वर्षों से सामान्य तौर पर यह देखा जा रहा है कि देश की राजनीति में संसदीय परंपराओं और मान्यताओं का जिस तेजी से क्षरण हो रहा है उसके चलते इस आदर्श स्थिति की कल्पना करना मुश्किल लग रहा है या हम कह सकते हैं कि दीवास्वप्न लग रहा है। एनडीए की तरफ से कोशिश है कि वह अपना उम्मीदवार स्पीकर के पद पर बिठाए, इंडिया गठबंधन की कोशिश है कि स्पीकर के चुनाव को लेकर एनडीए सरकार के बहुमत का एनडीए सरकार के शक्ति परीक्षण का एक आधार तैयार किया जाए। एनडीए ने अपने सभी घटक दलों के नेताओं से बातचीत और विमर्श शुरू कर दिया है एक राउंड की बैठक केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के घर में हो चुकी है और लगातार बैठकों का सिलसिला जारी है। इंडिया गठबंधन की तरफ से भी माइंड गेम चल रहा है। इंडिया गठबंधन की पहली कोशिश है कि एनडीए में किसी भी तरह से एक बिखराव पैदा किया जाए और स्पीकर के सवाल पर जनता दल युनाइटेड और तेलुगु देसम पार्टी में की तरफ से किसी एक को उम्मीद्दार बनाया जाए। शिवसेना उद्भव की तरफ से इस बात का संकेत दिया जा चुका है कि अगर तेलुगु देशम पार्टी स्पीकर पद के लिए दावा पेश करती है तो शिवसेना और इंडिया गठबंधन उसको समर्थन देने पर विचार कर सकता है। यह कोई गंभीर ठोस प्रस्ताव नहीं है। एनडीए की भरपूर कोशिश है कि यह संदेश दिया जाए कि जिस तरह से एनडीए 1 और एनडीए 2 नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकारें चली उसी तरह से एनडीए 3 की सरकार में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नरेंद्र मोदी की इच्छानुसार नरेंद्र मोदी के ही एक्शन प्लान के मुताबिक चलेंगे इसलिए कैबिनेट के विस्तार के समय कैबिनेट के फॉर्मेशन के समय नरेंद्र मोदी ने सभी पुराने चेहरों को एक बार फिर मंत्रि परिषद में जगह दे दिया और इसके पीछे एक ही सोच है कि यह संदेश दिया जाए देश की जनता में अपने राजनीतिक विरोधियों को कि सब कुछ ठीक चल रहा है एनडीए में तीसरा जो कार्यकाल है वह भी उसी तरह से रहेगा जिस तरह से एनडीए 1 और एनडीए 2 का कार्यकाल था। लेकिन इंडिया गठबंधन इस बार पिछले समय के मुताबिक ज्यादा सशक्त ज्यादा मजबूत और ज्यादा ऑर्गेनाइज दिखाई दे रहा है और राजनीति में सबसे बड़ा कारण होता है मनौवैज्ञानिक होता है मोराल का होता है और आज की तारीख में इंडिया गठबंधन में शामिल घटक दलों का मोराल काफी हाई है। खासतौर से कांग्रेस पार्टी का जो कि इंडिया गठबंधन का सबसे बड़ा घटक दल है और दूसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी का और उसके मुखिया अखिलेश यादव का अब उम्मीद की जा रही है कि इंडिया गठबंधन की तरफ से इस बात की भरपूर कोशिश होगी कि आखिर समय तक स्पीकर के चुनाव को लेकर एनडीए को मनोवैज्ञानिक दबाव में रखा जाए और अगर किसी भी तरह से गुंजाइश बनती है कोई संभावना आती है तो एनडीए में स्पीकर के सवाल पर विचारों में मतभेद बनाने की कोशिश किया जाए। टीडीपी और जनता दल युनाइटेड दोनों इस बात को अच्छी तरह समझते हैं उनको पता है कि अगर स्पीकर के सवाल पर उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से सीधे टकराव मोल लिया तो एनडीए सरकार का भविष्य भी दांव पर लग सकता है लेकिन दूसरी तरफ यह भी चिंता है कि अगर स्पीकर के पद भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कोई चुना जाता है या काबिज होता है तो फिर भविष्य की राजनीति के लिए टीडीपी और जनता दल यूनाइटेड के लिए भी उतना ही खतरा हो सकता है जितना खतरा कि इंडिया गठबंधन में शामिल छोटे दलों के लिए हो सकता है इसलिए स्पीकर की भूमिका को लेकर स्पीकर के अधिकारों को लेकर स्पीकर का महत्वपूर्ण है उसको लेकर खींचतान बनी हुई है। अब देखना है कि एनडीए स्पीकर के चुनाव में बाजी मारता है या इंडिया गठबंधन स्पीकर के सवाल पर एनडीए में बिखराव पैदा करने में कामयाबी हासिल कर लेता है।
दूसरा महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रम पिछले 48 घंटे में देखने को मिला है। बताया जा रहा है जनता दल यूनाइटेड के मुखिया बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तबीयत खराब हो गई है। सुनने में ये भी आ रहा है कि उनको गहन मेडिकल परीक्षण में रखा गया है और उनका इलाज चल रहा है अगर नीतीश कुमार का स्वास्थ बिगड़ता है तो उसका सीधा असर जनता दल यूनाइटेड के राजनीतिक सम्भावनाओं पर भी पड़ सकता है। अगर नीतीश कुमार किन्हीं कारणों से अस्वस्थ रहते हैं लंबे समय तक तो इसका सीधा असर बिहार की राज्य सरकार के राजनैतिक भविष्य पर उसकी स्थिरता पर भी पड़ सकता है। इस तरह भी इंडिया और एनडीए के घटक दलों के प्रमुख नेताओं की नजर है। उनकी निगाहें है वे नीतीश कुमार के स्वास्थ को लेकर तरह तरह की अटकलबाइयों का बाज़ार गर्म है। माना ये जा रहा है कि जिस तरह की अस्वस्थता नीतीश कुमार को देखने को मिल रही है वह निकट भविष्य मे न केवल बिहार के सरकार के राजनैतिक भविष्य पर असर डाल सकता है बल्कि एनडीए की जो दिल्ली में सरकार है उसके भविष्य पर भी उसकी स्टेबिलिटी पर भी आसार डाल सकता है।
तीसरा एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ है पिछले 24 घंटों में, राहुल गांधी ने रायबरेली संसदीय सीट उसको अपने पास रखा है और वायनाड संसदीय सीट से त्याग पत्र दे दिया है वायनाड संसदीय क्षेत्र से प्रियंका गांधी अब चुनाव लड़ेंगी। माना जा रहा है कि इसके पीछे कांग्रेस पार्टी की भविष्य के लिए राजनैतिक रणनीति है। ये तो यही है उत्तर प्रदेश में जो खोया हुआ जनाधार है उसको दोबारा वापस लाया जाए। उस खोए हुए जनाधार को वापस लाने के लिए राहुल गांधी का पूरे उत्तर प्रदेश में सघन राजनैतिक दौरा कराया जाय दूसरी रणनीति हैं कि दक्षिण भारत हमेशा से कांग्रेस पार्टी के लिए ऑक्सीजन का काम करता रहा। कांग्रेस नेतृत्व खासतौर से गांधी परिवार पर जब जब राजनैतिक संकट आया दक्षिण भारत ने गांधी परिवार की मदद की कांग्रेस पार्टी की मदद की कांग्रेस पार्टी को दोबारा सत्ता में वापसी कराया इसलिए दक्षिण भारत में भी गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी अपना राबता अपना सरोकार अपनी प्रतिबद्धता बनाए रखना चाहती हैं इसलिए परिवार के सबसे करीबी और राहुल गांधी के सबसे भरोसेमंद प्रियंका गांधी को वायनाड की सीट दी गई हैं। कल जब राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे रायबरेली और वायनाड के बारे में अपना निर्णय सुना रहे थे उसके बाद जब प्रियंका गांधी से पूछा गया कि आपका क्या मानना है कि राहुल गांधी ने वायनाड छोडकर ठीक किया या खराब किया। प्रियंका गांधी ने आश्वस्त किया है कि वायनाड की जनता को राहुल गांधी की कमी महसूस नहीं होने दी जाएगी। उन्होंने ये भी कहा है कि वे खुद राहुल गांधी के जितने भी वायदे हैं जितने भी अधूरे काम है जो वायनाड की जनता से राहुल गांधी ने किए हैं उन सभी वादों और अधूरे कार्यों को वे पूरा करने की कोशिश करेंगी। प्रियंका ने दावा किया है कि राहुल और प्रियंका दोनो रायबरेली अमेठी और वायनाड तीनों संसदीय क्षेत्रों में लगातार जाते रहेंगे। वहां की जनता से मिलते रहे। वहाँ की जनता के दुख दर्द में हिस्सेदारी निभाते रहेंगे और उनकी समस्याओं के निराकरण करने की कोशिश करते रहेंगे। ये जो 3 महत्वपूर्ण राजनैतिक घटनाक्रम है ये आने वाले समय में देश की राजनीति की दिशा और दशा तय करने वाले हैं। लोकसभा स्पीकर का चुनाव एनडीए सरकार के लिए एक बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण काम है अगर एनडीए की सरकार स्पीकर के पद पर अपना उम्मीदवार जिताने में कामयाब हो जाती है। तो आने वाले कुछ महीने के लिए एनडीए की सरकार को राजनैतिक ताकत मिल जाएगी और वे आप अपना पॉलिटिकल एजेंडा आगे बढ़ा सकते हैं।