
भाषा विवाद, जनगणना व शिक्षा नीति को लेकर केंद्र पर साधा निशाना
नई दिल्ली/लखनऊ 19 अप्रैल। बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की राष्ट्रीय अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने शुक्रवार को दक्षिण भारत, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों में पार्टी संगठन को मजबूत करने की दिशा में कमर कस ली है। उन्होंने दिल्ली में एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक कर पार्टी की रणनीति तय करते हुए साफ संकेत दिया कि बसपा अब केवल उत्तर भारत तक सीमित नहीं रहना चाहती, बल्कि देश के उन हिस्सों में भी अपनी उपस्थिति मजबूत करना चाहती है जहां सामाजिक न्याय और बहुजन आंदोलन की गुंजाइश मौजूद है।
1. पश्चिम के महाराष्ट्र, गुजरात तथा दक्षिण भारत के कर्नाटक, तमिलनाडु व केरल में बीएसपी संगठन के गठन की तैयारी व मजबूती एवं पार्टी के जनाधार को बढ़ाने आदि पर दिल्ली में हुई बैठक में गहन समीक्षा व आगे पूरे तन, मन, धन से पार्टी के कार्यों को दिशा-निर्देशानुसार बढ़ाने का संकल्प।
— Mayawati (@Mayawati) April 19, 2025
बैठक के बाद मायावती ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से किए गए सिलसिलेवार ट्वीट्स में पार्टी की आगामी रणनीति का खाका प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में बसपा संगठन को पुनर्गठित करने और उसे मजबूती देने की दिशा में गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। पार्टी ने इन राज्यों में जनाधार बढ़ाने और जनसंवाद को तीव्र करने के लिए स्थानीय स्तर पर बैठकों, कार्यकर्ता प्रशिक्षण और जमीनी मुद्दों को प्रमुखता देने की योजना बनाई है।
मायावती ने अपने ट्वीट में लिखा, “दिल्ली में हुई गहन समीक्षा बैठक में यह निर्णय लिया गया कि पूरे तन, मन, धन से पार्टी के कार्यों को दिशा-निर्देशानुसार बढ़ाने का संकल्प लिया गया है।” यह बयान न केवल बसपा के भावी रणनीतिक विस्तार की झलक देता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि पार्टी अब अन्य दलों के पारंपरिक प्रभाव क्षेत्रों में चुनौती देने को तैयार है।
2. जनगणना व उसके आधार पर लोकसभा सीटों का पुनः आवंटन, नई शिक्षा नीति व भाषा थोपने आदि के इन राज्यों व केन्द्र के बीच विवाद के राजनीतिक स्वार्थ के लिए उपयोग से जन व देशहित का प्रभावित होना स्वाभाविक। गुड गवरनेन्स वही जो पूरे देश को संविधान के हिसाब से साथ लेकर चले।
— Mayawati (@Mayawati) April 19, 2025
इस क्रम में उन्होंने दक्षिण भारत में उभरते विवादों पर भी चिंता जाहिर की, जिनमें जनगणना आधारित लोकसभा सीटों का पुनःआवंटन, नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा थोपे जाने जैसे मुद्दे प्रमुख हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इन मसलों का इस्तेमाल अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति हेतु कर रही है, जिससे न केवल आमजन बल्कि देश की एकता और विविधता पर भी प्रतिकूल असर पड़ सकता है। मायावती ने स्पष्ट किया कि ‘गुड गवर्नेंस’ वही है जो देश के संविधान के अनुरूप कार्य करे और सभी क्षेत्रों, भाषाओं और जातियों के बीच समानता बनाए रखे।
जनगणना को लेकर उन्होंने विशेष चिंता व्यक्त की और कहा कि इसके आधार पर लोकसभा सीटों का पुनःआवंटन करना दक्षिण भारत के राज्यों के प्रति अन्यायपूर्ण होगा। उन्होंने इशारा किया कि जनसंख्या वृद्धि की तुलना में शिक्षा, स्वास्थ्य, मानव संसाधन विकास जैसे क्षेत्रों में योगदान को भी महत्व दिया जाना चाहिए, न कि केवल जनसंख्या आंकड़ों को। “यह स्वाभाविक है कि जब किसी क्षेत्र की अवहेलना होती है, तो वहां से रोष भी उत्पन्न होता है,” उन्होंने लिखा।
3. वैसे भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले खासकर शोषित-उपेक्षित गरीबों, दलितों, आदिवासियों व पिछड़े वर्ग आदि के बच्चे-बच्चियाँ अंग्रेजी का ज्ञान अर्जित किए बिना आगे चलकर आईटी व स्किल्ड क्षेत्र में कैसे आगे बढ़़ सकते हैं, सरकार इस बात का जरूर ध्यान रखे। भाषा के प्रति नफरत अनुचित।
— Mayawati (@Mayawati) April 19, 2025
मायावती ने तीसरे ट्वीट में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले गरीब, दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्गों के बच्चों की शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि आज भी इन वर्गों के बच्चे अंग्रेज़ी भाषा में दक्षता न होने के कारण आईटी और स्किल क्षेत्रों में पिछड़ रहे हैं। उन्होंने सरकार से अपील की कि शिक्षा नीति बनाते समय इन वर्गों की वास्तविकता को ध्यान में रखा जाए और भाषा के आधार पर भेदभाव या श्रेष्ठता बोध उत्पन्न करने की प्रवृत्ति से बचा जाए।
“भाषा के प्रति नफरत अनुचित है,” उन्होंने दो टूक लिखा। यह बयान न केवल दक्षिण भारत में हिंदी के विरोध में उठ रही आवाजों के प्रति सहानुभूति का प्रतीक है, बल्कि बहुभाषी भारत के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने की अपील भी है। उन्होंने केंद्र सरकार को सलाह दी कि वह संघीय ढांचे की गरिमा को बनाए रखे और शिक्षा, संस्कृति तथा भाषा जैसे विषयों में राज्यों के अधिकारों का सम्मान करे।
विश्लेषकों का मानना है कि मायावती का यह बयान केवल एक राजनीतिक रणनीति नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय और संवैधानिक मूल्यों की पुनर्पुष्टि है। जहां अन्य दल राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत समीकरण साधने में लगे हैं, वहीं बसपा एक बार फिर से अपनी मूल विचारधारा की ओर लौटती नजर आ रही है — एक ऐसी राजनीति जो वंचितों, शोषितों और हाशिये पर खड़े समाजों के लिए समर्पित है।
राजनीतिक विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद बसपा अपनी खोई हुई ज़मीन को वापस पाने के लिए न केवल उत्तर प्रदेश में, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी सामाजिक मुद्दों को केंद्र में रखकर आगे बढ़ रही है। दक्षिण भारत में संगठन विस्तार की योजना उसी दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
अंत में, मायावती का यह बयान एक व्यापक संदेश देता है कि देश की राजनीति को केवल वोट बैंक तक सीमित न रखकर उसे एक संवेदनशील, समावेशी और समानतावादी दिशा में ले जाना ज़रूरी है। चाहे वह जनगणना आधारित सीट बंटवारा हो, नई शिक्षा नीति हो या भाषा नीति — हर निर्णय को संवैधानिक मूल्यों और सामाजिक न्याय के तराजू पर तोलना ही लोकतांत्रिक मर्यादा की पहचान है।