
‘ऑपरेशन सिंदूर’ स्थगन के पीछे अमेरिकी दबाव का संकेत?
नई दिल्ली, 13 मई। भारत-पाकिस्तान के बीच हाल ही में घोषित संघर्ष विराम, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विवादास्पद बयानों और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रहस्यमय तरीके से स्थगित हो जाने के घटनाक्रम को लेकर कांग्रेस ने मोदी सरकार पर तीखा हमला बोला है। वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश के सामने स्थिति स्पष्ट करने की मांग करते हुए कहा कि ट्रंप की कश्मीर मध्यस्थता की पेशकश और भारत-पाक संबंधों में हस्तक्षेप भारतीय संप्रभुता के लिए खतरे का संकेत है।
अशोक गहलोत ने कांग्रेस मुख्यालय में आयोजित एक प्रेस वार्ता के दौरान कहा कि यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने हालिया राष्ट्र के नाम संबोधन में न तो ट्रंप के बयानों का उल्लेख किया और न ही संघर्ष विराम की घोषणा पर कोई ठोस विवरण दिया। गहलोत ने कहा कि जब अमेरिका जैसे देश भारत-पाक मसले में घुसपैठ की कोशिश कर रहे हों, तब चुप्पी एक प्रकार की सहमति मानी जाएगी। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या प्रधानमंत्री अमेरिकी दबाव के चलते ऑपरेशन सिंदूर को स्थगित करने को मजबूर हुए?
गहलोत ने कहा कि डोनाल्ड ट्रंप ने भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू में रखकर बातचीत और व्यापार बंद करने की धमकी के आधार पर संघर्ष विराम को लागू कराने की बात कही है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अमेरिका की इस तरह की मध्यस्थता की कोशिश भारत की पारंपरिक विदेश नीति के खिलाफ है, जो शिमला समझौते के बाद से किसी भी बाहरी हस्तक्षेप को सिरे से नकारती रही है। उन्होंने कहा कि ट्रंप द्वारा कश्मीर को ‘अंतरराष्ट्रीय मुद्दा’ बताना भारत की संप्रभुता पर चोट है।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा कि सरकार की यह खामोशी केवल राष्ट्रहित के खिलाफ नहीं, बल्कि राष्ट्रीय आत्मसम्मान पर भी आघात है। उन्होंने कहा कि जब भारत की सेना सीमा पर दुश्मन को करारा जवाब दे रही थी, तभी अचानक संघर्ष विराम की घोषणा होना संदेह पैदा करता है। उन्होंने यह भी कहा कि यदि वास्तव में युद्ध रोकना था, तो यह कार्य किसी भी हाल में भारत की शर्तों पर और ठोस राजनयिक आश्वासनों के साथ होना चाहिए था।
गहलोत ने अमेरिका के पुराने रुख को याद दिलाते हुए कहा कि 1971 में जब भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता के लिए पाकिस्तान से युद्ध लड़ा था, तब अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में अपना सातवां नौसैनिक बेड़ा भेजकर भारत पर दबाव डालने की कोशिश की थी। बावजूद इसके, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उस दबाव की परवाह किए बिना निर्णायक युद्ध लड़ा और पाकिस्तान को दो टुकड़ों में बांटकर एक स्वतंत्र बांग्लादेश का निर्माण किया। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार को भी उसी ऐतिहासिक साहस का अनुसरण करना चाहिए था।
कांग्रेस नेता ने कहा कि राहुल गांधी समेत समूचा विपक्ष इस मुश्किल वक्त में केंद्र सरकार के साथ खड़ा था, लेकिन अचानक हुए संघर्ष विराम से यह अवसर खो गया कि भारत पाकिस्तान को आतंकवाद के मुद्दे पर वैश्विक मंच पर पूरी तरह बेनकाब कर सके। उन्होंने कहा कि ऐसे मौके बार-बार नहीं आते जब देश आतंकवाद को जड़ से खत्म कर सके और पाकिस्तान को यह संदेश दे सके कि भारत अब चुप नहीं बैठेगा।
गहलोत ने यह भी आरोप लगाया कि सरकार ने इस मामले में संवादहीनता का वातावरण बना दिया है, जिससे आम जनमानस में भ्रम और अविश्वास बढ़ा है। उन्होंने पूछा कि अगर वास्तव में पाकिस्तान से शांति वार्ता होनी थी तो उसे सशर्त और स्पष्ट रूप से भारत के हित में किया जाना चाहिए था। उन्होंने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री को किसी ऐसे वैश्विक दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जिससे वह खुलकर देश के सामने सच्चाई नहीं रख पा रहे हैं?
कांग्रेस की ओर से यह भी मांग की गई कि सरकार को संसद का विशेष सत्र बुलाकर इस विषय पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और सर्वदलीय बैठक बुलाकर विपक्ष को विश्वास में लेना चाहिए। गहलोत ने कहा कि देश जानना चाहता है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी निर्णायक सैन्य कार्रवाई को आखिरी क्षण पर क्यों स्थगित किया गया? उन्होंने आरोप लगाया कि इस तरह की चुप्पी केवल हमारी कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करती है और अमेरिका जैसे देशों को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का अवसर देती है।
प्रेस वार्ता के अंत में गहलोत ने प्रधानमंत्री मोदी से यह स्पष्ट करने को कहा कि वे सर्वदलीय बैठक से अब तक क्यों दूर रहे। उन्होंने कहा कि यदि प्रधानमंत्री तीसरी बार होने जा रही सर्वदलीय बैठक में शामिल होते हैं, तो यह देश को एक सकारात्मक और साहसी संदेश देगा कि सरकार हर सवाल का जवाब देने को तैयार है। गहलोत ने यह भी कहा कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत को समर्थन देने वाले देशों की सूची भी सरकार को सार्वजनिक करनी चाहिए। उन्होंने दावा किया कि अज़रबैजान और तुर्की जैसे देश खुले तौर पर पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए, जबकि भारत के पक्ष में कोई प्रमुख वैश्विक शक्ति मुखर नहीं हुई।
अंत में, अशोक गहलोत ने कहा कि देश इस समय कई सवालों से जूझ रहा है – ‘ऑपरेशन सिंदूर’ क्यों रोका गया? अमेरिका ने किस भाषा में भारत पर दबाव बनाया? और आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किस दबाव के चलते अब तक इस पूरे मामले में चुप हैं? उन्होंने कहा कि जब एक लोकतांत्रिक देश की जनता अपने चुने हुए प्रधानमंत्री से जवाब चाहती है, तो चुप्पी लोकतंत्र का नहीं, किसी दबाव का संकेत बन जाती है।