
प्रयागराज 11 दिसंबर। तीर्थराज प्रयागराज की पावन भूमि पर स्थित नागवासुकि मंदिर सनातन धर्म की आस्था का प्रमुख केंद्र है। इस मंदिर की पौराणिक महत्ता समुद्र मंथन की कथा से जुड़ी है। हिंदू धर्मग्रंथों में नागों की पूजा और उनके महत्व का विस्तृत वर्णन मिलता है। नागवासुकि को सर्पराज और भगवान शिव के कण्ठहार के रूप में मान्यता प्राप्त है। स्कंद पुराण, पद्म पुराण, भागवत पुराण और महाभारत में भी नागवासुकि से जुड़ी कथाएं वर्णित हैं।
समुद्र मंथन और नागवासुकि की भूमिका
समुद्र मंथन की कथा के अनुसार, जब देवताओं और असुरों ने अमृत प्राप्ति के लिए सागर मंथन का निश्चय किया, तब मंदराचल पर्वत को मथानी और नागवासुकि को रस्सी बनाया गया। इस प्रक्रिया में नागवासुकि का शरीर छिल गया और उन्हें गहरे घाव हो गए। भगवान विष्णु के निर्देश पर नागवासुकि ने प्रयागराज के त्रिवेणी संगम में स्नान किया, जिससे उनके घाव ठीक हो गए।
इसके बाद, वाराणसी के राजा दिवोदास ने अपनी तपस्या से नागवासुकि को काशी जाने का वरदान मांगा। लेकिन देवताओं के आग्रह पर नागवासुकि प्रयागराज में ही स्थापित हो गए। उन्होंने संगम स्नान के बाद अपने दर्शन की अनिवार्यता और सावन माह की पंचमी तिथि को पूरे लोकों में अपनी पूजा की शर्त रखी। इस प्रकार नागपंचमी का पर्व प्रारंभ हुआ।
भोगवती तीर्थ और नागवासुकि का योगदान
एक अन्य कथा के अनुसार, जब गंगा का धरती पर अवतरण हुआ, तो उनका वेग अत्यधिक तीव्र था। उस समय नागवासुकि ने अपने फन से भोगवती तीर्थ का निर्माण किया। यह तीर्थ नागवासुकि मंदिर के पश्चिमी भाग में स्थित था, लेकिन वर्तमान में कालकवलित हो चुका है। मान्यता है कि जब गंगा का जल मंदिर की सीढ़ियों को छूता है, तब यहां स्नान करने से भोगवती तीर्थ का पुण्य प्राप्त होता है।
नागवासुकि मंदिर की स्थापत्य और धार्मिक महत्ता
नागवासुकि मंदिर प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में गंगा नदी के तट पर स्थित है। यह मंदिर धार्मिक महत्व के साथ-साथ स्थापत्य की दृष्टि से भी अनूठा है। इसकी मुख्य मूर्ति भगवान नागवासुकि की है, जिनके दर्शन मात्र से कालसर्प दोष का निवारण होता है। मंदिर परिसर में अन्य पौराणिक देवताओं की मूर्तियां भी स्थापित हैं।
नागवासुकि मंदिर का पुनरुद्धार और आधुनिक संदर्भ
योगी आदित्यनाथ सरकार के प्रयासों से नागवासुकि मंदिर को एक नई पहचान मिली है। महाकुंभ के अवसर पर मंदिर का जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण कराया गया, जिससे इसे भव्य रूप प्रदान किया गया है। मंदिर के पुजारी श्याम लाल त्रिपाठी के अनुसार, मंदिर परिसर के विभिन्न हिस्सों का पुनर्निर्माण किया गया है और आधुनिक सुविधाओं का समावेश किया गया है।
असि माधव जी का पुनः प्रतिष्ठापन
मंदिर के पौराणिक महत्व के अनुसार, यहां द्वादश माधवों में से एक असि माधव का स्थान भी है। इस वर्ष देवोत्थान एकादशी के दिन असि माधव जी को पुनः प्रतिष्ठित किया गया। यह प्रयास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और यूपी सरकार के पर्यटन विभाग की पहल का हिस्सा है।
नागपंचमी और सावन माह में विशेष आयोजन
मंदिर में नागपंचमी के दिन भव्य मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा अर्पित करने और विशेष पूजा-अर्चना करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। सावन माह में भी यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु भगवान शिव और नागवासुकि के दर्शन के लिए आते हैं।
संगम स्नान के बाद नागवासुकि दर्शन की अनिवार्यता
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार, त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद नागवासुकि के दर्शन करने से ही स्नान का पूर्ण फल प्राप्त होता है। संगम स्नान, कल्पवास और कुंभ स्नान के साथ-साथ मंदिर दर्शन से श्रद्धालुओं के जीवन की बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
युवा पीढ़ी को जोड़ने का प्रयास
नागवासुकि मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ-साथ इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का भी प्रयास किया जा रहा है। यूपी सरकार और पर्यटन विभाग के सहयोग से मंदिर के इतिहास, पौराणिक कथाओं और इसकी आस्था के महत्व को प्रचारित किया जा रहा है।
आध्यात्मिक पर्यटन का केंद्र
नागवासुकि मंदिर न केवल आध्यात्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि प्रयागराज के धार्मिक पर्यटन का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। संगम तट पर स्थित इस मंदिर को देखने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं। महाकुंभ और कुंभ जैसे आयोजनों के दौरान मंदिर का महत्व और बढ़ जाता है।
नागवासुकि मंदिर भारतीय संस्कृति और धर्म का अद्वितीय प्रतीक है। इसकी पौराणिक कथाएं, धार्मिक महत्व और वास्तुकला इसे विशेष बनाती हैं। योगी सरकार के प्रयासों से इसका पुनरुद्धार न केवल आस्था का संरक्षण है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारी धरोहर को संरक्षित करने का एक उदाहरण भी है।