
नई दिल्ली 4 दिसंबर। भारत-चीन सीमा विवाद पर विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने 3 दिसंबर 2024 को लोकसभा में एक महत्वपूर्ण बयान दिया। उन्होंने इस बयान में पूर्वी लद्दाख में जारी सीमा विवाद, द्विपक्षीय संबंधों, और हालिया घटनाक्रमों का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने सीमा विवाद के ऐतिहासिक, सैन्य, कूटनीतिक और भौगोलिक पहलुओं को स्पष्ट किया।
भारत-चीन सीमा विवाद का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
डॉ. जयशंकर ने अपने बयान की शुरुआत भारत-चीन सीमा विवाद के ऐतिहासिक संदर्भ से की। उन्होंने बताया कि चीन 38,000 वर्ग किमी भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जा किए हुए है। यह क्षेत्र 1962 के भारत-चीन युद्ध और उससे पहले की घटनाओं के कारण विवादित है। इसके अतिरिक्त, 1963 में पाकिस्तान ने भी 5,180 वर्ग किमी भारतीय भूमि चीन को अवैध रूप से सौंप दी थी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए दशकों से द्विपक्षीय वार्ताएं हो रही हैं। हालांकि, पूर्वी लद्दाख में 2020 से शुरू हुए सैन्य तनाव ने इस विवाद को और जटिल बना दिया।
2020 की घटनाओं और गलवान झड़प का प्रभाव
2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती और भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ के प्रयासों के कारण सीमा पर गंभीर तनाव उत्पन्न हुआ। गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प, जिसमें भारतीय सैनिकों ने वीरता का प्रदर्शन किया, 45 वर्षों में पहली बार दोनों देशों के बीच हताहतों का कारण बनी।
डॉ. जयशंकर ने बताया कि इस स्थिति से निपटने के लिए भारत ने तीन महत्वपूर्ण कदम उठाए
1. तत्काल जवाबी तैनाती: भारतीय सेना ने कोविड महामारी के कठिन समय में भी सीमाओं पर त्वरित और प्रभावी तैनाती सुनिश्चित की।
2. कूटनीतिक प्रयास: सीमा पर तनाव कम करने के लिए गहन बातचीत की गई।
3. लंबी अवधि की रणनीति: सीमा विवाद के समाधान के लिए दीर्घकालिक उपायों पर ध्यान केंद्रित किया गया।
द्विपक्षीय समझौतों का अवलोकन
जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी रेखांकित किया। 1988 में दोनों देशों के बीच यह सहमति बनी थी कि सीमा विवाद का समाधान शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से किया जाएगा। इसके बाद 1993, 1996, और 2005 में शांति स्थापना और विश्वास निर्माण के लिए समझौते किए गए।
2013 में बार्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट और 2012 में वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) की स्थापना ने सीमा पर शांति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
गलवान घाटी के बाद की स्थिति और हालिया घटनाक्रम
गलवान घटना के बाद, भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख के कई विवादित क्षेत्रों में सैनिकों के बीच दूरी बनाए रखने के लिए कई चरणों में कदम उठाए। हाल ही में, 21 अक्टूबर 2024 को देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच समझौता हुआ।
देपसांग और डेमचोक समझौता:
- भारतीय गश्त को पारंपरिक क्षेत्रों में बहाल किया गया।
- स्थानीय चरवाहों को उनके पारंपरिक चरागाहों तक पहुंचने की अनुमति दी गई।
- दोनों पक्षों ने सैनिकों की तैनाती में कमी करने का निर्णय लिया।
इस समझौते के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच 23 अक्टूबर को कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान मुलाकात हुई।
सीमा पर बुनियादी ढांचे का विकास
डॉ. जयशंकर ने सीमा पर भारत के बढ़ते बुनियादी ढांचे की सराहना की। उन्होंने कहा कि सरकार ने सीमाई क्षेत्रों में सड़क, पुल, और सुरंग निर्माण पर तीन गुना अधिक व्यय किया है।
प्रमुख उपलब्धियां:
- अटल टनल (लाहौल-स्पीति),
- सेला और नेचिपु टनल (तवांग)।
- उमलिंगला पास रोड (दक्षिण लद्दाख)।
- जोजिला एक्सिस का विस्तार।
इन प्रयासों ने भारतीय सशस्त्र बलों की परिचालन क्षमता को बढ़ाया है।
सीमा प्रबंधन और कूटनीतिक प्रयास
2020 के बाद से, भारत ने चीन के साथ 21 उच्च-स्तरीय सैन्य कमांडर बैठकें और 17 WMCC बैठकें कीं। इन बैठकों का उद्देश्य सीमा विवाद को सुलझाना और विश्वास बहाली के उपाय लागू करना था।
डॉ. जयशंकर ने बताया कि सीमा प्रबंधन के लिए तीन सिद्धांतों का पालन किया गया:
1. एलएसी का सम्मान और पालन।
2. यथास्थिति में एकतरफा बदलाव न करना।
3. पिछले समझौतों का पूर्ण अनुपालन।
आगे की दिशा और द्विपक्षीय संबंधों का पुनर्निर्माण
जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत-चीन संबंध तब तक सामान्य नहीं हो सकते जब तक सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता सुनिश्चित नहीं होती। उन्होंने बताया कि हालिया समझौते के बाद, दोनों देशों ने द्विपक्षीय वार्ताओं को पुनः शुरू करने और विश्वास निर्माण उपायों को मजबूत करने का निर्णय लिया है।
भविष्य की प्राथमिकताएं:
- सीमाई क्षेत्रों में डी-एस्केलेशन।
- सीमा विवाद के दीर्घकालिक समाधान के लिए विशेष प्रतिनिधियों की बैठक।
- द्विपक्षीय संबंधों को चरणबद्ध तरीके से पुनर्निर्मित करना।
प्रभात भारत विशेष
डॉ. जयशंकर ने अपने बयान में भारत की कूटनीतिक और सैन्य रणनीति को रेखांकित करते हुए कहा कि सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाई क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए निर्णायक कदम उठाए हैं।
उन्होंने भरोसा जताया कि भारत-चीन सीमा विवाद का समाधान शांतिपूर्ण वार्ता और रणनीतिक प्रयासों के माध्यम से निकाला जाएगा। इसके साथ ही, उन्होंने लोकसभा से इस दिशा में सरकार के प्रयासों को पूर्ण समर्थन देने की अपील की।