
नई दिल्ली 23 अक्टूबर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच हाल ही में कज़ान में हुई द्विपक्षीय वार्ता ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और सीमा विवादों पर चल रही चर्चाओं को एक नया मोड़ दिया है। दोनों नेताओं के बीच यह वार्ता पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लंबे समय से जारी तनाव के बीच हुई, जो भारत और चीन के संबंधों में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने सीमा पर शांति और स्थिरता को बनाए रखने पर बल दिया, जिसे दोनों देशों की प्राथमिकता बताया।
वार्ता का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इस द्विपक्षीय वार्ता से पहले भारत और चीन के बीच संबंधों में पिछले कुछ वर्षों में गंभीर तनाव पैदा हुआ था, विशेष रूप से 2020 में गलवान घाटी में हुए सैन्य टकराव के बाद। उस संघर्ष में दोनों पक्षों के सैनिकों की जानें गईं, जिसके बाद दोनों देशों के बीच संबंधों में खटास आ गई। गलवान की घटना के बाद से ही सीमा पर स्थिति को लेकर भारत और चीन के बीच कई दौर की सैन्य और कूटनीतिक वार्ताएं हुईं, लेकिन कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आ पाया।
हालांकि, ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के इतर प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच कज़ान में हुई इस औपचारिक मुलाकात को दोनों देशों के बीच बढ़ते तनाव को कम करने और सीमा पर स्थिरता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह वार्ता पांच साल बाद दोनों नेताओं के बीच हुई पहली औपचारिक बातचीत थी, जो वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है।
सीमा पर शांति और स्थिरता की प्राथमिकता
प्रधानमंत्री मोदी ने वार्ता के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से स्पष्ट रूप से कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना दोनों देशों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हम सीमा पर पिछले चार वर्षों में उत्पन्न हुए मुद्दों पर बनी सहमति का स्वागत करते हैं। हमारा मानना है कि भारत-चीन संबंध न केवल हमारे लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।”
प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर जोर दिया कि दोनों देशों के बीच विश्वास, सम्मान और संवेदनशीलता को बनाए रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में किसी भी तरह की अशांति से बचा जा सके। उन्होंने आगे कहा कि भारत और चीन के बीच संबंधों में सकारात्मकता बनाए रखने के लिए सीमा पर शांति और स्थिरता बेहद जरूरी है। यह न केवल दोनों देशों के नागरिकों के लिए बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए भी आवश्यक है।
शी जिनपिंग की प्रतिक्रिया
प्रधानमंत्री मोदी के बयान का समर्थन करते हुए चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी कहा कि भारत और चीन के बीच किसी भी विवाद को सुलझाने के लिए संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए। शी जिनपिंग ने कहा, “दोनों पक्षों के लिए अधिक संवाद और सहयोग करना, अपने मतभेदों और असहमतियों को ठीक से सुलझाना और एक-दूसरे की विकास आकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता करना महत्वपूर्ण है।”
शी जिनपिंग ने यह भी कहा कि भारत और चीन के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों को समझें और विकासशील देशों के लिए एक मिसाल कायम करें। उन्होंने कहा कि दोनों देशों को बहु-ध्रुवीयता और अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।
एलएसी पर गश्त व्यवस्था का समझौता
द्विपक्षीय वार्ता से कुछ ही दिन पहले, भारत और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर गश्त व्यवस्था के संबंध में एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। यह समझौता पिछले कई हफ्तों से जारी कूटनीतिक और सैन्य चर्चाओं का परिणाम था, जिसका उद्देश्य सीमा पर शांति और स्थिरता सुनिश्चित करना था। इस समझौते से दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव को कम करने और गश्त को व्यवस्थित तरीके से संचालित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
विदेश मंत्रालय के अनुसार, यह समझौता दोनों देशों के बीच नियमित गश्त को फिर से शुरू करने के लिए किया गया है, जो कि 2020 के गलवान घटना के बाद बंद हो गई थी। समझौते के तहत दोनों पक्षों ने यह निर्णय लिया है कि सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए नियमित गश्त की जाएगी, ताकि भविष्य में किसी भी तरह के सैन्य टकराव से बचा जा सके।
प्रधानमंत्री मोदी का दृष्टिकोण
प्रधानमंत्री मोदी ने इस द्विपक्षीय वार्ता के दौरान स्पष्ट किया कि भारत-चीन संबंधों का भविष्य आपसी विश्वास, आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता पर आधारित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना न केवल दोनों देशों के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि दोनों देशों को अपने मतभेदों को बातचीत और संवाद के माध्यम से सुलझाना चाहिए, ताकि भविष्य में किसी भी तरह के संघर्ष से बचा जा सके।
प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग से कहा, “हमारा मानना है कि भारत-चीन संबंध न केवल हमारे लोगों के लिए बल्कि वैश्विक शांति, स्थिरता और प्रगति के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण हैं।” उन्होंने जोर देकर कहा कि सीमा पर पिछले चार वर्षों में उत्पन्न हुए मुद्दों को सुलझाने के लिए बातचीत और संवाद ही एकमात्र रास्ता है।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत-चीन संबंध
भारत और चीन दुनिया की सबसे बड़ी और तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हैं। दोनों देशों का न केवल एशिया में बल्कि वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान है। ऐसे में दोनों देशों के बीच संबंधों का वैश्विक शांति और स्थिरता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई यह वार्ता न केवल द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भी इसका महत्व है।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक लंबे समय से चल रहा मुद्दा रहा है, लेकिन दोनों देशों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि इन विवादों को बातचीत और संवाद के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच हुई इस वार्ता से यह स्पष्ट होता है कि दोनों देश अब भी शांति और स्थिरता को प्राथमिकता दे रहे हैं और सीमा विवादों को सुलझाने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपना रहे हैं।
2020 से पहले और बाद के संबंध
भारत और चीन के संबंधों में 2020 में गलवान घाटी में हुए सैन्य संघर्ष के बाद से ही तनाव बढ़ गया था। इस संघर्ष ने दोनों देशों के बीच के संबंधों को गहरा नुकसान पहुंचाया था और दोनों पक्षों के बीच विश्वास की कमी उत्पन्न हो गई थी। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के बीच कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर कई दौर की वार्ताएं हुईं, जिनका उद्देश्य सीमा पर स्थिति को सामान्य बनाना और तनाव को कम करना था।
2022 में इंडोनेशिया के बाली में और 2023 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में जी-20 की बैठकों के दौरान भी प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी, लेकिन इन मुलाकातों में कोई औपचारिक बातचीत नहीं हो पाई थी। कज़ान में हुई यह औपचारिक वार्ता दोनों नेताओं के बीच पांच साल में पहली बार हुई थी, जिसमें सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों पर गहन चर्चा की गई।
संवाद और सहयोग की आवश्यकता
प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन को अपने मतभेदों को सुलझाने के लिए संवाद और सहयोग का रास्ता अपनाना चाहिए। दोनों नेताओं ने कहा कि संवाद के जरिए ही दोनों देशों के बीच के विवादों को सुलझाया जा सकता है और भविष्य में शांति और स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सकता है।
शी जिनपिंग ने भी इस बात पर जोर दिया कि भारत और चीन को बहु-ध्रुवीयता और अंतरराष्ट्रीय लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए। उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लिए यह जरूरी है कि वे अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी जिम्मेदारियों को समझें और विकासशील देशों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करें।
भारत-चीन संबंधों का भविष्य
कज़ान में हुई इस वार्ता से यह स्पष्ट होता है कि भारत और चीन दोनों ही अपने संबंधों को सुधारने और सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि, दोनों देशों के बीच अभी भी कई मुद्दों पर मतभेद हैं, लेकिन इस वार्ता से यह संकेत मिलता है कि दोनों पक्ष अब भी बातचीत के जरिए इन मतभेदों को सुलझाने की दिशा में काम कर रहे हैं।
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद लंबे समय से चल रहा है, लेकिन दोनों देशों ने हमेशा इस बात पर जोर दिया है कि इन विवादों को बातचीत और संवाद के माध्यम से सुलझाया जाना चाहिए। कज़ान में हुई यह वार्ता इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिससे दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार की संभावना बढ़ गई है।