
(वसिंद्र मिश्र) बीजेपी हाई कमान ने गंभीर सोच विचार के बाद यह तय किया है की उपचुनाव तक उत्तर प्रदेश में यथा स्थिति बनाई रखी जाएगी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पूरी तरह से फ्री हैंड देने का निर्णय लिया गया है ऐसी स्थिति में योगी आदित्यनाथ का विरोध कर रहे केशव प्रसाद मौर्य और उनके गुटके बाकी नेताओं और विधायकों के लिए बेहद मुश्किल का दौर आने वाला है।
इसकी शुरुआत हो गयीं है अभी प्रारंभिक तौर पर योगी आदित्यनाथ ने उपचुनाव के प्रबंधन और तैयारी के लिए जो कमेटी बनाई है उसमें केशव प्रसाद मौर्य और उनके करीबियों को जिम्मेदारी नहीं सौंप गई है जो लोग योगी आदित्यनाथ को जानते हैं उनको कोई गलतफहमी नहीं होनी चाहिए योगी आदित्यनाथ की कार्यशैली बहुत ही स्वतंत्र रूप से कार्य करने की रही है वे अपने कामकाज में बहुत लंबे समय तक बाहरी दखलअंदाजी पसंद नहीं करते हैं और अगर उनकी मर्जी के खिलाफ कोई निर्णय होता है तो वह उस फैसले को दिल से स्वीकार नहीं करते हैं।
उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव के पद पर कुछ साल पहले हुई दुर्गा शंकर मिश्रा की नियुक्ति है दुर्गा शंकर मिश्रा की नियुक्ति पार्टी वाला कमान ने योगी आदित्य नाथ की इच्छा के विरुद्ध किया था और योगी की इच्छा के विरुद्ध उनको सेवा विस्तार भी दिया जाता रहा लेकिन योगी आदित्यनाथ ने कभी भी दुर्गा शंकर मिश्र पर भरोसा नहीं किया उनके रिटायरमेंट के बाद अपने सबसे भरोसेमंद अधिकारी मनोज कुमार सिंह को मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव की कुर्सी सौंप दी योगी आदित्यनाथ 2017 में भी केंद्र सरकार की कार्यशैली से नाराज होकर दिल्ली से गोरखपुर चले गए थे और वे लखनऊ तब आए जब उनको यह आश्वासन दिया गया की मुख्यमंत्री के पद पर उन्हीं को तैनात किया जा रहा है
2022 के विधानसभा के चुनाव में भी योगी आदित्यनाथ ने अपने शर्तों पर मुख्यमंत्री का पद हासिल किया योगी आदित्यनाथ इंडिपेंडेंट माइंडसेट से काम करते हैं और खास तौर से दागी और संदिग्ध छवि वाले नेताओं और अधिकारियों से दूरी बनाए रखने की कोशिश करते हैं।
शायद यही कारण है कि उनके मंत्री मण्डल में शामिल कुछ नेता और उनकी सरकार में शामिल कुछ अधिकारी पिछली कल्याण सिंह की सरकार की तरह उनके खिलाफ भी समय-समय पर साजिश करने की कोशिश करते रहते हैं भारतीय राजनीति में इस तरह की घटनाएं इसके पहले भी कई बार होती रही हैं जब केंद्रीय नेतृत्व राज्य नेतृत्व के खिलाफ जो जोर आजमाइस करता रहा
हाल के वर्षों में अगर देखा जाए तो विश्वनाथ प्रताप सिंह हेमवती नंदन बहुगुणा और कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने समय-समय पर अपने राज्य नेतृत्व के खिलाफ विफल कोशिश की थी कांग्रेस पार्टी छोड़कर जन मोर्चा बनाने वाले विश्वनाथ प्रताप सिंह ने चौधरी अजीत सिंह को मुलायम सिंह के मुकाबले मुख्यमंत्री का चुनाव लड़ा दिया था लेकिन ऐन वक्त पर परिस्थितियों का आकलन करने के बाद उन्होंने अपने घटक दल के पांच विधायकों को अजीत सिंह के बजाय मुलायम सिंह के पक्ष में समर्थन देने का निर्देश दे दिया परिणाम स्वरूप मुलायम सिंह चौधरी अजीत सिंह को शिकस्त देने में कामयाब रहे और पहली बार मुख्यमंत्री बन गए यह अलग बात रही की विश्वनाथ प्रताप सिंह और मुलायम सिंह के बीच में हमेशा से 36 का रिश्ता रहा जब विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो कांग्रेस पार्टी में उनके विरोधी लोगों ने मुलायम सिंह की मदद से उनके कथित दहिया ट्रस्ट में हुए घोटाले का मुद्दा उछाला था।
दूसरी घटना हेमवती नंदन बहुगुणा और राज मंगल पांडे के दौर में हुई राज मंगल पांडे, हेमवती नंदन बहुगुणा के करीबी माने जाते थे लेकिन जब उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री के चयन के समय राज मंगल पांडे और उनके विरोधी के बीच में शक्ति परीक्षण हुआ तो बहुगुणा ने राज मंगल पांडे का साथ नहीं दिया कांग्रेस पार्टी विधानमंडल के नेता के रूप में प्रमोद तिवारी की नियुक्ति के समय इस तरह की घटनाएं तो कई बार हुई नरेश अग्रवाल खुद को कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता के दावेदार मानते थे और उनकी कोशिश रहती थी की प्रमोद तिवारी के बजाएं नेता विधानमंडल दल की जिम्मेदारी उनको दी जाए लेकिन जब-जब नेता विधान मंडल दल के चयन की स्थिति पैदा हुई तो उसे समय कांग्रेस पार्टी आला कमान की तरफ से नरेश अग्रवाल के मुकाबले प्रमोद तिवारी को सपोर्ट किया गया
इसकी शुरुआत नवल किशोर शर्मा से हुई और उनके बाद जीतेन्द्र प्रसाद सत्यव्रत चतुर्वेदी दिग्विजय सिंह जितने भी केंद्रीय पर्यवेक्षक और प्रभारी उत्तर प्रदेश में आए सभी ने नरेश अग्रवाल के मुकाबले प्रमोद तिवारी को सपोर्ट किया।
नरेश अग्रवाल नव कांग्रेस पार्टी में अपना करियर समाप्त होता देखकर उन्होंने कांग्रेस विधानमंडल दल को तोड़ दिया और लगभग 22 विधायकों के साथ उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह सरकार को समर्थन दे दिया था और कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में शामिल हो गए तब से लेकर अब तक कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में अपने सर्वाइवल के लिए संघर्ष कर रही है।
केशव प्रसाद मौर्य के साथ इस समय जो कुछ हुआ है भारतीय राजनीति में यह कोई पहली घटना नहीं है जब केंद्रीय नेतृत्व अपने चहेते नेताओं को आगे करके अपने विरोधियों को कमजोर करने की हो और कामयाबी नहीं मिलने की स्थिति में यू टर्न ले लिया जो नेता उसके इशारे पर विरोध के स्वर बुलंद करते रहे उन्ही को डंप कर दिया मौजूदा राजनीति इस समय ओबीसी दलित और अति पिछड़ों की राजनीति है देश की सभी पार्टियों इन वर्गों को अपने पक्ष में जुटाने के लिए कोशिश में लगे हैं जनता पार्टी के अंदर भी सामाजिक समीकरण और जातीय समीकरण बनाने की कोशिश चल रही है और इसी कोशिश के तहत उत्तर प्रदेश में भी सत्ता और संगठन में संतुलन बनाने की कोशिश जारी है लेकिन योगी आदित्यनाथ के बढ़त कद और पापुलैरिटी के सामने पार्टी आला कमान अपने मिशन को कुछ समय के लिए स्थगित करने के मूड में दिखाई दे रहा है यही कारण है की योगी विरोधियों को कुछ समय के लिए शांत रहने के संकेत दे दिए गए हैं।
इस माह के अंत में उत्तर प्रदेश विधानसभा का सत्र शुरू होने वाला है और उम्मीद की जा रही है की उपचुनाव की तारीख भी इसी माह मे घोषित हो जाएगी ऐसी स्थिति में पार्टी नेतृत्व संगठन और सरकार को बेहतर तालमेल बनाकर उपचुनाव में जीत हासिल करने के निर्देश दिए हैँ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पहले ही दावा कर चुके हैं कि भारतीय जनता पार्टी उपचुनाव में सर्वाधिक सीटे जीतेगी भारतीय जनता पार्टी और सरकार के अंदर उठा बवंडर अब उपचुनाव के परिणाम आने तक शांत रहने वाला है।